भारत के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कैंसर के इलाज में तकनीकी और इनोवेशन पर आधारित हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म Karkinos Healthcare को 375 करोड़ रुपये में खरीदा है। रिलायंस की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी Reliance Strategic Business Ventures Ltd (RSBVL) ने इस अधिग्रहण को पूरा किया।
Karkinos: कैंसर के शुरुआती पहचान और इलाज में अग्रणी
Karkinos Healthcare Pvt Ltd की स्थापना 24 जुलाई 2020 को हुई थी। यह कंपनी तकनीकी-आधारित समाधान प्रदान करती है, जो कैंसर की शुरुआती पहचान, निदान, और प्रभावी प्रबंधन पर केंद्रित है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में कंपनी का टर्नओवर लगभग 22 करोड़ रुपये था।
RSBVL ने Karkinos में 1 करोड़ इक्विटी शेयर और 36.5 करोड़ ओप्शनली फुली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OFCDs) खरीदे। इस लेन-देन के तहत कंपनी ने अपने पूर्व शेयरधारकों के 30,075 इक्विटी शेयरों को रद्द कर दिया है।
Karkinos के प्रमुख निवेशक
इससे पहले Karkinos में निम्नलिखित प्रमुख निवेशक थे:
- Ewart Investments Limited (टाटा संस की सहायक कंपनी)
- Reliance Digital Health Ltd (रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी)
- Mayo Clinic (US)
- सुंदर रमण (Reliance Foundation Youth Sports के डायरेक्टर और IPL के पूर्व COO)
- रवि कांत (टाटा मोटर्स के पूर्व एमडी)
Karkinos की सेवाएं और विस्तार
Karkinos का उद्देश्य कैंसर की शुरुआती पहचान और प्रभावी इलाज को किफायती बनाना है। कंपनी ने दिसंबर 2023 तक लगभग 60 अस्पतालों के साथ साझेदारी की थी।
- इंफाल, मणिपुर में एक 150-बेड का मल्टीस्पेशलिटी कैंसर हॉस्पिटल स्थापित कर रही है।
- कंपनी की आय के मुख्य स्रोत हैं:
- Advanced Cancer Care Diagnostics and Research (ACCDR)
- Distributed Cancer Care Network (DCCN)
- कंपनियों के साथ शुरुआती कैंसर निदान के लिए साझेदारी।
- कैंसर केयर हॉस्पिटल।
रिलायंस का हेल्थकेयर पोर्टफोलियो होगा मजबूत
रिलायंस ने इस अधिग्रहण के जरिए हेल्थकेयर के क्षेत्र में अपने पोर्टफोलियो को और मजबूत किया है। Karkinos का लक्ष्य किफायती कीमत पर गुणवत्तापूर्ण कैंसर देखभाल सेवाएं प्रदान करना है।
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की मंजूरी
यह अधिग्रहण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मुंबई बेंच द्वारा स्वीकृत Corporate Insolvency Resolution Process के तहत हुआ। रिलायंस को इस लेन-देन के लिए किसी अन्य सरकारी या नियामक मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी।