आजकल बहुत से भारतीय अपनी भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे कि बेहतर शिक्षा, नौकरी के अवसर, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं, कम टैक्स और निवेश के लिए अनुकूल माहौल। पिछले पांच सालों में ही 8,34,000 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है।
नागरिकता छोड़ने का ट्रेंड बढ़ रहा है
COVID-19 महामारी से पहले (2011-2019) हर साल लगभग 1,32,000 भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ते थे। लेकिन 2020 से 2023 के बीच ये संख्या 20% बढ़कर 1,58,000 प्रति वर्ष हो गई। लोग सिर्फ उच्च शिक्षा और नौकरियों के लिए ही नहीं, बल्कि बेहतर वित्तीय अवसरों और उच्च जीवन स्तर के लिए भी विदेश जा रहे हैं।
वीजा की जरूरत और विदेशी नागरिकता
भारतीय पासपोर्ट के साथ कई देशों की यात्रा के लिए वीजा की जरूरत होती है, जबकि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और सिंगापुर जैसे देशों के पासपोर्ट पर वीजा-मुक्त यात्रा की सुविधा मिलती है। यह भी एक बड़ा कारण है कि भारतीय विदेशी नागरिकता लेने की सोचते हैं।
मुख्य आंकड़े:
- 2018 से 2023 के बीच 114 देशों में भारतीयों ने उनकी नागरिकता ली।
- ज्यादातर लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, और जर्मनी में बसे।
- पिछले छह सालों में 70 लोगों ने पाकिस्तानी नागरिकता ली, 130 ने नेपाली नागरिकता, और 1,500 लोगों ने केन्याई नागरिकता चुनी।
- चीन के बाद भारत के सबसे ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय छात्र हैं, जिनकी संख्या 1.5 मिलियन है।
दोहरी नागरिकता का मुद्दा
भारतीय कानून दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है, इसलिए जो लोग विदेशी नागरिकता अपनाते हैं, उन्हें अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है। भारत वापस आने के लिए उन्हें वीजा की जरूरत होती है, लेकिन 2006 में शुरू किया गया “ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया” (OCI) कार्ड वीजा-मुक्त प्रवेश और निजी रोजगार की सुविधा देता है। हालांकि, यह कार्ड 2015 में ही व्यापक रूप से उपलब्ध हुआ, जब “पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन” (PIO) कार्ड को बंद कर दिया गया।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति दे, तो शायद भारतीयों द्वारा अपनी नागरिकता छोड़ने की संख्या कम हो सकती है।