अगर आपको लगता है कि सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ वॉर, कंपनियों की कमज़ोर कमाई या अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की सुस्ती ही भारतीय शेयर बाजार की गिरावट की वजह हैं, तो एक बार फिर से सोचिए।
हर साल मार्च के महीने में भारतीय बाजारों में लिक्विडिटी यानी नकदी की तंगी देखी जाती है, जिससे खासतौर पर मिड-कैप शेयरों पर अधिक दबाव पड़ता है। यह एक बार की बात नहीं है, बल्कि हर साल मार्च में ऐसा ही होता है।
मार्च में क्यों आती है नकदी की तंगी?
मार्च का महीना भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिए सबसे कठिन महीनों में से एक होता है। इसकी मुख्य वजहें हैं:
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अग्रिम कर (Advance Tax) भुगतान:
- कंपनियों और अमीर व्यक्तियों को अपनी आय का एक हिस्सा साल भर में चार किस्तों में टैक्स के रूप में जमा करना होता है।
- इसकी अंतिम और सबसे बड़ी किस्त 15 मार्च को जमा करनी होती है, जिससे बैंकों में उपलब्ध नकदी की मात्रा घट जाती है।
- सरकार इस टैक्स को तुरंत खर्च नहीं करती, जिससे यह पैसा आरबीआई के पास जमा रहता है और बाज़ार में नकदी की कमी हो जाती है।
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वित्तीय वर्ष का समापन (Financial Year-End Settlements):
- कंपनियां अपनी बैलेंस शीट को साफ करने के लिए मार्च में बड़े पैमाने पर बोनस भुगतान, सप्लायर का भुगतान, और वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट करती हैं।
- इस दौरान GST भुगतान भी करना पड़ता है, जिससे बैंकिंग सिस्टम से भारी मात्रा में नकदी निकल जाती है।
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सरकारी उधारी (Government Borrowing):
- सरकार को अपना वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit) कम करने के लिए मार्च में भारी मात्रा में बॉन्ड और ट्रेजरी बिल जारी करने पड़ते हैं।
- इससे सरकारी उधारी बढ़ती है, जो निजी कंपनियों और बैंकों के लिए कर्ज महंगा कर देती है।
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म्यूचुअल फंड और एनबीएफसी का दबाव:
- मार्च में निवेशक बड़ी मात्रा में अपने म्यूचुअल फंड निवेशों को रिडीम (निकालना) करते हैं, खासतौर पर डेब्ट म्यूचुअल फंड से।
- इससे म्यूचुअल फंड कंपनियों को मजबूरन बॉन्ड और अन्य संपत्तियां बेचनी पड़ती हैं, जिससे बाजार में बॉन्ड यील्ड बढ़ती है और लिक्विडिटी घटती है।
- NBFCs को अपने कर्ज चुकाने में दिक्कत होती है, क्योंकि बैंक भी इस समय लोन देने में सावधानी बरतते हैं।
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आरबीआई की रिजर्व आवश्यकताएँ (CRR और SLR):
- कैश रिजर्व रेशियो (CRR) और स्टेट्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (SLR) के तहत बैंकों को अपनी जमा पूंजी का एक हिस्सा आरबीआई के पास रखना होता है।
- मार्च में बैंक अपने बैलेंस शीट को मजबूत करने के लिए अधिक नकदी जमा रखते हैं, जिससे बाजार में लिक्विडिटी और घट जाती है।
मार्च में क्या होता है?
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ब्याज दरें बढ़ जाती हैं:
- जब बैंकों के पास नकदी की कमी होती है, तो वे एक-दूसरे से अधिक ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं।
- इससे Call Money Market में उधारी की लागत बढ़ जाती है।
- कंपनियों के लिए भी शॉर्ट टर्म लोन महंगा हो जाता है।
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शेयर बाजार में गिरावट आती है:
- जब नकदी की तंगी होती है, तो संस्थागत निवेशक (FIIs और म्यूचुअल फंड) अपनी होल्डिंग को बेचने लगते हैं।
- मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयरों में सबसे ज्यादा गिरावट होती है, क्योंकि इन शेयरों में संस्थागत भागीदारी अधिक होती है।
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RBI का हस्तक्षेप:
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) Open Market Operations (OMO) और Variable Rate Repo (VRR) जैसी योजनाओं के ज़रिए नकदी डालने की कोशिश करता है।
- लेकिन मार्च के अंत तक स्थिति फिर भी तनावपूर्ण बनी रहती है।
क्या निवेशकों के लिए यह अवसर है?
हाँ! लंबी अवधि के निवेशकों (Long-Term Investors) के लिए यह गिरावट एक अच्छा अवसर हो सकता है।
- मार्च में लिक्विडिटी की समस्या अस्थायी होती है, और अप्रैल के महीने में बाजार में नकदी लौटने लगती है।
- जो निवेशक लंबी अवधि के लिए शेयर खरीदना चाहते हैं, वे इस समय अच्छे स्टॉक्स को सस्ते दाम पर खरीद सकते हैं।
- खासतौर पर मिड-कैप और स्मॉल-कैप स्टॉक्स में आकर्षक वैल्यूएशन मिल सकते हैं।
हर साल मार्च में भारतीय बाजार नकदी की तंगी (Liquidity Crunch) से गुजरता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ती हैं और शेयर बाजार में गिरावट आती है।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
- अग्रिम कर और जीएसटी भुगतान
- कंपनियों की बैलेंस शीट क्लोजिंग
- सरकारी उधारी और बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी
- म्यूचुअल फंड और एनबीएफसी पर दबाव
- बैंकों की रिजर्व आवश्यकताएँ (CRR और SLR)
हालांकि, यह गिरावट अस्थायी होती है और अप्रैल में बाजार में फिर से सुधार आने लगता है। लंबी अवधि के निवेशकों को इस समय अवसर तलाशना चाहिए और अच्छे शेयरों में निवेश करने पर विचार करना चाहिए।