अमेरिका की ट्रंप प्रशासन ने स्टूडेंट वीज़ा नियमों को कड़ा करने का फैसला किया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा जगत में हलचल मच गई है। सबसे ज्यादा असर भारतीय परिवारों पर पड़ रहा है, जो अमेरिका में विदेशी छात्रों का सबसे बड़ा समूह हैं।
क्या बदला है?
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फिक्स्ड ड्यूरेशन: अब F, J और I वीज़ा को 4 साल की तय अवधि तक सीमित किया जाएगा, जिसे रिन्यू करना होगा।
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कड़ी जांच: वीज़ा इंटरव्यू में देरी, सोशल मीडिया अकाउंट्स की जांच और राजनीतिक विचारों पर रोकटोक बढ़ी है।
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कानूनी टकराव: हार्वर्ड जैसी यूनिवर्सिटीज़ कोर्ट में जाकर अस्थायी रोक हासिल कर चुकी हैं।
क्यों कर रहा है अमेरिका ऐसा?
सरकार का दावा है कि इससे वीज़ा का दुरुपयोग रुकेगा और निगरानी आसान होगी। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह कदम राजनीतिक है और अमेरिका की शिक्षा साख को नुकसान पहुंचाएगा।
भारतीय छात्रों पर असर
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सबसे बड़ा समूह: 2024 में 3.3 लाख भारतीय छात्र अमेरिका में थे, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में करीब $9 अरब का योगदान देते हैं।
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अनिश्चितता और खर्च: छात्रों को बार-बार रिन्यूअल और वीज़ा रद्द होने का खतरा रहेगा।
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दिशा बदलते सपने: अब कई भारतीय छात्र कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और यूरोप की ओर रुख कर रहे हैं। अमीर परिवार EB-5 निवेश वीज़ा पर भी विचार कर रहे हैं।
आर्थिक असर
अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में विदेशी छात्रों के आवेदन 35% तक घट चुके हैं। सिर्फ 10% की गिरावट भी लगभग $1 अरब का नुकसान पहुंचा सकती है।
वैश्विक तुलना
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कनाडा और यूके: पोस्ट-स्टडी वर्क वीज़ा को बढ़ाकर छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं।
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ऑस्ट्रेलिया: स्किल और क्षेत्रीय जरूरतों से जुड़े फ्लेक्सिबल विकल्प देता है।
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अमेरिका: नई पाबंदियां उसे वैश्विक शिक्षा बाज़ार में कमजोर बना रही हैं।
भारतीय छात्रों को क्या करना चाहिए?
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दूतावास अपडेट्स पर नजर रखें।
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अतिरिक्त खर्च और कानूनी सहायता के लिए वित्तीय तैयारी रखें।
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वैकल्पिक देशों (कनाडा, यूके, यूरोप) की योजनाएं देखें।
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जो परिवार सक्षम हैं, वे EB-5 निवेश वीज़ा पर विचार कर सकते हैं।
क्या ‘अमेरिकन ड्रीम’ खत्म हो रहा है?
नई वीज़ा पॉलिसी दिखाती है कि अमेरिका घरेलू राजनीति और वैश्विक साख के बीच फंस गया है। भारतीय छात्रों के लिए यह भावनात्मक और आर्थिक तनाव बढ़ा रही है, वहीं अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ के लिए अरबों डॉलर के नुकसान का खतरा बन गई है।



