ख़बर पढ़ने से पहले समझ लीजिए की मेरी न ही सोनू सूद से दोस्ती हैं और ना ही शाहरुख ख़ान से दुश्मनी। मेरी औक़ात उनसे ऐसे रिश्ते रखने की नहीं हैं। लेकिन जो दोस्ती और सिस्टम के कुकर्मों से दुश्मनी हैं वो सब आप के लिए, ख़ुद के लिए हैं। अब पढ़ना जारी रखें…
देश में अवैध ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की मौजूदा कार्रवाई केवल एक आपराधिक जांच नहीं रह गई है, बल्कि अब यह सरोगेट विज्ञापन और सेलेब्रिटी जिम्मेदारी को लेकर एक राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुकी है। ED की जांच से जो तथ्य सामने आए हैं, वे यह दिखाते हैं कि मामला सिर्फ सट्टेबाजी तक सीमित नहीं है, बल्कि कानून के चयनात्मक इस्तेमाल (Selective Enforcement) का भी है।
मौजूदा कार्रवाई में ED ने क्या किया
ED ने सट्टेबाजी और बेटिंग ऐप्स से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में अब तक:
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करीब 19 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं
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इन जब्तियों में बैंक बैलेंस, कैश, फिक्स्ड डिपॉजिट और डिजिटल ट्रांजैक्शन शामिल हैं
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जब्त की गई रकम को PMLA (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत “अपराध से अर्जित आय” माना गया है
जांच एजेंसी के अनुसार, भारत में प्रतिबंधित बेटिंग ऐप्स का प्रचार सीधे नहीं, बल्कि विदेशी कंपनियों, इवेंट प्रमोशन और ब्रांड एंडोर्समेंट के नाम पर किया गया।

सरोगेट विज्ञापन कैसे काम करता था
ED की जांच में सामने आया कि:
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बेटिंग ऐप्स ने विदेशी शेल कंपनियों के जरिए विज्ञापन कॉन्ट्रैक्ट किए
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सेलेब्रिटीज़ को यह बताया गया कि वे किसी “गेमिंग”, “स्पोर्ट्स प्रमोशन” या “इवेंट” का प्रचार कर रहे हैं
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असल में उसी प्रचार से भारतीय यूजर्स को अवैध बेटिंग प्लेटफॉर्म तक पहुंचाया गया
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भुगतान को विज्ञापन फीस, ब्रांड प्रमोशन और डिजिटल मार्केटिंग चार्ज के रूप में दिखाया गया
यानी, सीधा स्कैम प्रमोट नहीं किया गया, लेकिन उसका रास्ता जरूर साफ किया गया।
किन-किन नामों की संपत्ति जब्त हुई
इस कार्रवाई के तहत जिन चर्चित चेहरों की संपत्तियों पर ED ने कार्रवाई की, उनमें शामिल हैं:
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युवराज सिंह – लगभग ₹2.5 करोड़
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नेहा शर्मा – लगभग ₹1.2 करोड़
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सोनू सूद – लगभग ₹1 करोड़
ED का तर्क है कि इन पैसों का स्रोत वही प्रचार गतिविधियां थीं, जिनसे अवैध ऐप्स को फायदा पहुंचा।
यहीं से उठता है ‘दोहरा मापदंड’ का बड़ा सवाल
अगर सरोगेट विज्ञापन को ही कानूनी अपराध से जुड़ा प्रचार माना जा रहा है, तो फिर सवाल यह है कि—
देश में वर्षों से पान मसाला और गुटखा कंपनियां भी ठीक यही मॉडल अपनाती आई हैं। विज्ञापन में असली उत्पाद नहीं दिखता, बल्कि इलायची, माउथ फ्रेशनर या “लाइफस्टाइल ब्रांड” के नाम पर प्रचार होता है।
इन विज्ञापनों में बड़े-बड़े सितारे नजर आते हैं, जैसे:
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शाहरुख खान
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अजय देवगन
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अक्षय कुमार
यहां भी आम जनता भली-भांति जानती है कि विज्ञापन किसी और चीज का नहीं, बल्कि तंबाकू उत्पाद का ही है। फिर भी, इन मामलों में न तो मनी लॉन्ड्रिंग की जांच होती है, न ही “अपराध से अर्जित आय” की बात उठती है।
क्या कानून सिर्फ कुछ सेक्टर के लिए है?
यही सबसे गंभीर सवाल है।
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अगर सरोगेट विज्ञापन गलत है → तो हर जगह गलत होना चाहिए
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अगर सेलेब्रिटी की जिम्मेदारी बनती है → तो हर सेलेब्रिटी पर बराबर नियम लागू होना चाहिए
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अगर बेटिंग ऐप का प्रचार अपराध है → तो हानिकारक उत्पादों के छुपे प्रचार पर भी वही पैमाना क्यों नहीं?
आज ED की कार्रवाई से यह संदेश जा रहा है कि कानून का तराजू सभी के लिए बराबर नहीं है।
निष्कर्ष
मौजूदा सट्टेबाजी ऐप मामला केवल कुछ सेलेब्रिटीज़ या कुछ करोड़ रुपये की जब्ती तक सीमित नहीं है। यह सरोगेट विज्ञापन की पूरी अर्थव्यवस्था, उसकी कानूनी वैधता और दोहरे मापदंड को उजागर करता है।
जब तक नीति स्पष्ट नहीं होगी और कानून सभी उद्योगों व सभी बड़े नामों पर समान रूप से लागू नहीं होगा, तब तक ऐसी कार्रवाइयों को लोग न्याय नहीं, बल्कि चयनात्मक कार्रवाई ही मानते रहेंगे।




