नोएडा में अपने सपनों का आशियाना बनाने की चाहत रखने वाले हजारों परिवारों के लिए एक बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। सुपरटेक समूह की परियोजनाओं में निवेश करने वाले खरीदारों की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। ताजा हालातों को देखते हुए फ्लैट खरीदारों की सांसें अटकी हुई हैं, क्योंकि बिल्डर पर बकाये का बोझ इतना बढ़ गया है कि रजिस्ट्री की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप पड़ने के कगार पर है। घर मिलने के बावजूद मालिकाना हक न मिल पाने का दर्द हजारों लोगों को सता रहा है।
प्राधिकरण का भारी-भरकम बकाया बना रोड़ा, 4300 से ज्यादा परिवारों के घर के मालिकाना हक पर छाया अनिश्चितता का संकट
नोएडा प्राधिकरण और बिल्डर के बीच चल रही इस रस्साकशी में आम आदमी पिस रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति बेहद चिंताजनक है। सुपरटेक समूह की ग्रुप हाउसिंग और व्यावसायिक परियोजनाओं पर नोएडा प्राधिकरण का कुल बकाया 6000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। इस विशालकाय बकाये के चलते 4300 से अधिक फ्लैटों की रजिस्ट्री फंसी हुई है। प्राधिकरण का कहना है कि इस बकाया राशि में जमीन आवंटन की लागत, लीज रेंट और समय पर भुगतान न करने के कारण बढ़ा हुआ ब्याज शामिल है। जब तक इस राशि का निस्तारण नहीं होता, खरीदारों को राहत मिल पाना मुश्किल लग रहा है।
सेक्टर-94 की ‘सुपरनोवा’ परियोजना पर सबसे ज्यादा वित्तीय बोझ, अकेले इस प्रोजेक्ट पर ही 3700 करोड़ से अधिक की देनदारी
बकाये की इस लिस्ट में सबसे चौंकाने वाले आंकड़े सुपरटेक की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘सुपरनोवा’ के हैं। सेक्टर-94 में स्थित इस प्रोजेक्ट पर प्राधिकरण का सबसे ज्यादा पैसा फंसा हुआ है। यह परियोजना 2011 में आवंटित 70,002 वर्ग मीटर के भूखंड पर विकसित की जा रही थी। रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले सुपरनोवा परियोजना पर ही प्राधिकरण का करीब 3751 करोड़ रुपये बकाया है। यह कुल बकाये का आधे से भी ज्यादा हिस्सा है, जो दर्शाता है कि किस तरह एक प्रोजेक्ट की वित्तीय अनियमितता ने पूरे समूह के खरीदारों को संकट में डाल दिया है।
सालों से सिर्फ नोटिस भेजने तक ही सीमित रही प्राधिकरण की कार्रवाई, समय पर सख्ती न होने का खामियाजा भुगत रहे आम खरीदार
इस पूरे प्रकरण में सिस्टम की लाचारी और लापरवाही भी साफ नजर आती है। जानकारों का मानना है कि इतनी बड़ी रकम एक दिन में जमा नहीं हुई है। नोएडा प्राधिकरण ने पिछले कई वर्षों में बकाया वसूलने के लिए बिल्डर को नोटिस तो जारी किए, लेकिन धरातल पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई। यदि समय रहते कड़े कदम उठाए गए होते, तो आज बकाये का आंकड़ा 6000 करोड़ तक नहीं पहुंचता। प्राधिकरण की इसी ढिलाई का नतीजा है कि आज हजारों मध्यम वर्गीय परिवार, जिन्होंने अपनी जीवन भर की कमाई इन फ्लैटों में लगा दी, वे अपने ही घर की रजिस्ट्री के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।





