दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के स्तर और खराब होती हवा की गुणवत्ता (AQI) को देखते हुए सरकार अब सख्त कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण नियंत्रण और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘ग्रीन सेस’ का दायरा बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। इस नए प्रस्ताव के तहत अब केवल डीजल ही नहीं, बल्कि पेट्रोल और सीएनजी वाहनों की खरीद पर भी अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ सकता है। सरकार का मानना है कि इससे न केवल प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि इलेक्ट्रिक वाहनों की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। हालांकि, महंगाई के दौर में वाहन खरीदने की बढ़ती लागत को लेकर जनता के बीच असमंजस और मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
पेट्रोल और सीएनजी वाहनों पर 1-2% टैक्स लगाने की तैयारी, मार्च 2026 तक नई ईवी पॉलिसी के तहत लागू हो सकता है नियम
प्रस्तावित योजना के अनुसार, दिल्ली में अब तक डीजल वाहनों पर जो 1% ग्रीन सेस लगता था, उसे बढ़ाकर 2% करने का विचार है। इसके साथ ही, पेट्रोल और सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों पर भी 1-2% का नया टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। यह कदम दिल्ली की नई इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी का हिस्सा हो सकता है, जिसे मार्च 2026 तक लागू किए जाने की संभावना है। इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा, क्योंकि इससे नए वाहनों की ‘ऑन-रोड’ कीमत में बढ़ोतरी होगी। सरकार का तर्क है कि पारम्परिक ईंधन वाले वाहनों को महंगा करके लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ आकर्षित किया जा सकेगा।
10 साल पुराने वाहनों के लिए पीयूसी के समय देना होगा भारी शुल्क, सालाना 300 करोड़ रुपये जुटाने का है लक्ष्य
सिर्फ नई गाड़ियां ही नहीं, बल्कि पुरानी गाड़ियों के मालिकों पर भी सख्ती बरती जाएगी। प्रस्ताव के मुताबिक, 10 साल से पुराने वाहनों को प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र (PUC) रिन्यू कराते समय ‘ग्रीन सेस’ के रूप में अतिरिक्त भुगतान करना होगा। यह राशि 2,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक हो सकती है। प्रशासन का अनुमान है कि इस कदम से सालाना लगभग 300 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया जा सकेगा। इस मॉडल के लिए उत्तराखंड जैसे राज्यों की व्यवस्था का अध्ययन किया गया है, जहां फास्टैग के माध्यम से कटौती की संभावना तलाशी जा रही है।
प्रदूषण कम करने के नाम पर जनता का समर्थन, लेकिन महंगाई और बढ़ती लागत से लोगों में नाराजगी भी देखने को मिली
इस मुद्दे पर जनता की राय बंटी हुई है। हालिया सर्वे और लोगों से हुई बातचीत में यह बात सामने आई है कि लगभग 30-40% लोग प्रदूषण को कम करने के लिए इस सेस का समर्थन कर रहे हैं। उनका मानना है कि दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए कड़े फैसले जरूरी हैं। वहीं, एक बड़ा वर्ग बढ़ती महंगाई और गाड़ियों की कीमतों में उछाल से नाराज है। सर्वे में शामिल 66% लोगों ने सरकार की प्रदूषण नियंत्रण क्षमता (जैसे GRAP लागू करना) पर सवाल उठाए हैं, लेकिन वे ग्रीन सेस को एक जरूरी बुराई मान रहे हैं। सोशल मीडिया और आम चर्चाओं में लोग यह भी कह रहे हैं कि सेस का असर उन गाड़ियों पर भी पड़ेगा जो जरूरी सामान की ढुलाई करती हैं, जिससे अन्य वस्तुएं भी महंगी हो सकती हैं।
अब तक वसूले गए 999 करोड़ के इस्तेमाल पर उठे सवाल, भविष्य में ईवी चार्जिंग और सड़क सुरक्षा पर खर्च होगा पैसा
ग्रीन सेस लगाने के साथ-साथ सबसे बड़ा सवाल इसके सही उपयोग को लेकर खड़ा हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने ट्रकों से ग्रीन सेस के रूप में अब तक 999 करोड़ रुपये जुटाए हैं, लेकिन इसके प्रभावी इस्तेमाल को लेकर पारदर्शिता की कमी महसूस की गई है। प्रशासन का दावा है कि नए राजस्व का उपयोग पूरी तरह से प्रदूषण नियंत्रण, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन बनाने और सड़क सुरक्षा को बेहतर करने में किया जाएगा। चूंकि दिल्ली-एनसीआर में पीएम-10 (PM-10) प्रदूषण का 58% कारण धूल है, इसलिए इस फंड का इस्तेमाल सड़कों के किनारे घास और झाड़ियां लगाने जैसे उपायों के लिए भी किया जाएगा ताकि धूल को उड़ने से रोका जा सके।
विपक्षी दलों ने इसे जनता पर अतिरिक्त बोझ बताया, पारदर्शी तरीके से फंड के इस्तेमाल और सही एक्यूआई डेटा की मांग
इस प्रस्ताव पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। विपक्षी दलों और आलोचकों का कहना है कि सरकार प्रदूषण की असल समस्या पर ध्यान देने के बजाय जनता पर टैक्स का बोझ डाल रही है। लोगों की मांग है कि सरकार सबसे पहले एक्यूआई (AQI) का सही डेटा उपलब्ध कराए और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) को समय पर लागू करे। जनता चाहती है कि ग्रीन सेस के रूप में वसूले गए एक-एक पैसे का हिसाब पारदर्शी तरीके से दिया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पैसा वाकई पर्यावरण सुधार पर खर्च हो रहा है, न कि केवल सरकारी खजाना भरने के लिए।



