नवीन पेंशन व्यवस्था (एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लागू करना देश की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। विपक्षी पार्टियां राज्य स्तर पर इस बात को महत्वपूर्ण बता रही हैं कि एनपीएस को पुरानी पेंशन योजना की जगह लागू किया जाना चाहिए। इस मामले पर केंद्र सरकार ने बदलाव की समीक्षा करने के लिए समिति का गठन कर दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी चेतावनी में कहा है कि ओपीएस को एनपीएस की जगह लागू करने से राज्य सरकारों को भारी वित्तीय बोझ झेलना पड़ सकता है। आरबीआई के यह बयान तब आया जब पिछले कुछ समय में हुए विभिन्न राज्य चुनावों में पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का मुद्दा बनाया गया था।
रिपोर्ट अनुसार अगर ओपीएस को पुन: लागू किया जाता है तो 2040 के बाद राज्यों का पेंशन खर्च मौजूदा की तुलना में 4.5 गुना अधिक हो सकता है।
अगर हर राज्य अपनी पेंशन योजना को ओपीएस में परिवर्तित कर देता है तो उनकी पेंशन की हालात में आई सुधार की प्रगति रुक सकती है। आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसा करने से आर्थिक सुधारों की गति को धीमी कर दिया जाएगा।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों पर पेंशन का भार पिछले समय से 4.2 से 4.8 गुणा ज्यादा बढ़ सकता है अगर वे ओपीएस को लागू करते हैं।
यदि राज्यों की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत रही तो 2060 तक राज्यों की एनपीएस में कुल जीडीपी का 0.9 प्रतिशत का खर्च हो सकता है।
पर्याप्ती, आरबीआई की चेतावनी का मतलब यह है कि हालांकि पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करना एक लोकप्रिय कदम हो सकता है, लेकिन इसके वित्तीय परिणामों को समझना महत्वपूर्ण है। इसलिए, राजनयिक दबाव के बजाय, पेंशन प्रणाली के वित्तीय प्रभाव की समीक्षा करने की आवश्यकता है।