बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने शराबबंदी क़ानून में एक बार फिर से बदलाव किया है. यह बदलाव शराबबंदी क़ानून के तहत ज़ब्त किए गए वाहनों को लेकर किया गया है.
- नए नियम के मुताबिक़ ज़ब्त की गई गाड़ियों की बीमा राशि का महज़ 10 फ़ीसदी ज़ुर्माना भरकर गाड़ियों को छुड़ाया जा सकता है.
- पहले इसके लिए बीमा में निर्धारित क़ीमत का 50 फ़ीसदी देना ज़रूरी था.
- बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में शराबबंदी क़ानून लागू किया था. इस क़ानून में अब तक चार बड़े बदलाव हो चुके हैं.
शराबबंदी क़ानून को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार सवालों के घेरे में रहे हैं. ख़ासकर ज़हरीली शराब से होने वाली मौतों, लाखों मुक़दमें और गिरफ़्तारी की वजह से नीतीश पर राजनीतिक दबाव भी रहा है.
बिहार में सत्ताधारी जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है, “सरकार क़ानून में बदलाव अपने अनुभव के आधार पर करती है. हमने शराबबंदी में कोई छूट नहीं दी है. सोशल इंडेक्स में बिहार बेहतर कर सके इसके लिए शराबबंदी हमारी ज़िम्मेदारी है.”
क्या है नया नियम?
नए नियम के अनुसार जिन गाड़ियों की क़ीमत बीमा के तहत तय नहीं की जा सकती है, उनकी क़ीमत तय करने का अधिकार ज़िला परिवहन अधिकारी को दिया गया है.
गाड़ी मालिक या जिस व्यक्ति पर गाड़ी से शराब के अवैध कारोबार का आरोप लगा हो, उसे 15 दिनों के अंदर ज़ुर्माना भरकर गाड़ी को में लेना होगा.
यह बदलाव बीते सात साल में शराबबंदी क़ानून के तहत ज़ब्त की गई सभी तरह की गाड़ियों पर लागू होगा.
इसके पीछे एक बड़ी वजह शराबबंदी क़ानून के तहत राज्य के अलग-अलग थानों में पड़ी हज़ारों गाड़ियां हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ शराबबंदी क़ानून के तहत राज्य में बीते सात साल में क़रीब एक लाख़ गाड़ियों को ज़ब्त किया गया है. इनमें दोपहिया और चार पहिया, दोनों तरह के वाहन शामिल हैं.
50 हज़ार गाड़ियाँ पड़ी हैं थाने में
ख़बरों के मुताबिक़ ज़ब्त की गई क़रीब 50,000 गाड़ियां अब भी राज्य के थानों में पड़ी हुई हैं.
इन गाड़ियों की नीलामी भी सरकार की तरफ़ से कराई जाती है. लेकिन जर्जर होने के बाद इसकी मांग कम हो जाती है.
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, “यह चुनावी साल है, इसलिए शराबबंदी क़ानून में कुछ और ढील भी दी जा सकती है. इस क़ानून में कई बार बदलाव के पीछे जनता का दबाव भी है. नए नियमों को लेकर यह भी सच है कि थानों में बड़ी संख्या में ज़ब्त गाड़ियां पड़ी हुई हैं.”