विदेशी बाजारों में कारोबार का रुख सामान्य रहने के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को सरसों, मूंगफली और सोयाबीन जैसे देशी तेल-तिलहनों के भाव गिरावट के साथ बंद हुए जबकि कच्चे पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल कीमतें अपरवर्तित रहीं।
बाजार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 0.1 प्रतिशत की बेहद मामूली तेजी है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज आज बंद रहा। सूत्रों ने कहा कि लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहनों की मांग कमजोर रही। तिलहन का उत्पादन मुख्य रूप से खरीफ सत्र यानी नवंबर दिसंबर के दौरान होता है।

 

लेकिन इस सत्र के दौरान देश के किसानों के सोयाबीन, बिनौला और मूंगफली फसल की पेराई काफी कम हुई जो कहीं से ठीक नहीं है। इसी ‘पीक सीजन’ के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात लगभग 25 प्रतिशत बढ़ा है जो हमारे तेल उद्योग के लिए खतरे की घंटी की तरह है। जिस कदर आयात किया जा रहा है उससे अगले सात-आठ महीने तक देश में नरम तेलों (सॉफ्ट आयल) की प्रचुरता बनी रहेगी और इससे भी बड़ा खतरा यह है कि सोयाबीन और सरसों की फसलें खपेंगी नहीं। सस्ते आयातित तेलों के आगे भला कौन महंगी लागत वाले सरसों या सोयाबीन को खरीदना पसंद करेगा?

 

सूत्रों ने कहा कि सरकार को सस्ते आयातित तेलों के झटके से देशी तेल-तिलहन उत्पादक किसानों को बचाने के लिए सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर रैपसीड तेल की तरह अधिक से अधिक आयात शुल्क लगा देना चाहिये। सूत्रों ने कहा कि जिस तरह सरकार ने ‘स्टॉक लिमिट’ लागू कर सभी कारोबारियों और तेल मिलों को तेल-तिलहन के स्टॉक के बारे में सरकार के एक पोर्टल पर सूचना देने को कहा था, ठीक उसी तरह से तेल कंपनियों को भी अपने अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की जानकारियां नियंमित आधार पर देने का निर्देश देना चाहिये।

 

इससे सारी स्थिति स्पष्ट हो जायेगी और सरकार जब चाहे कंपनियों के द्वारा निर्धारित दाम का निरीक्षण कर उपयुक्त कदम उठा सकती है। आयात कर लगाये जाने और पोर्टल पर जानकारियां सार्वजनिक रहने से तेल कीमतों की महंगाई भी थमेगी। ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में आई गिरावट का समुचित लाभ उपभोक्ताओं को मिला या नहीं इसकी भी जानकारी सरकार को मिल सकती है।

इन कदमों से हमारे देशी तेल-तिलहनों की भी खपत हो जायेगी, उपभोक्ताओं को तेल कीमतों में आई गिरावट का लाभ भी मिलेगा और देश में खल और डीआयल्ड केक (डीओसी) की उपलब्धता भी बढ़ेगी जिनकी कमी और जिनके दाम महंगे होने की वजह से दूध, अंडे, मक्खन, चिकेन आदि के दाम बढ़े हैं। ऐसे किसी पोर्टल के कारण कई समस्याओं का निदान एक साथ होने की संभावना है।

 

सूत्रों ने कहा कि सरकार की तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए देशी तेल तिलहन किसानों के हित में अपनी सारी नीतियां बनानी होंगी ताकि देशी तेल-तिलहनों की खपत हो, देशी तेल मिलें पूरी क्षमता से काम करे, विदेशी मुद्रा की बचत हो और रोजगार भी बढ़े।

 

सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

  • सरसों तिलहन – 6,655-6,705 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
  • मूंगफली – 6,665-6,725 रुपये प्रति क्विंटल।
  • मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,760 रुपये प्रति क्विंटल।
  • मूंगफली रिफाइंड तेल 2,485-2,750 रुपये प्रति टिन।
  • सरसों तेल दादरी- 13,200 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सरसों पक्की घानी- 2,010-2,140 रुपये प्रति टिन।
  • सरसों कच्ची घानी- 2,070-2,195 रुपये प्रति टिन।
  • तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,150 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,050 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,500 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सीपीओ एक्स-कांडला- 8,350 रुपये प्रति क्विंटल।
  • बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 11,750 रुपये प्रति क्विंटल।
  • पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,000 रुपये प्रति क्विंटल।
  • पामोलिन एक्स- कांडला- 9,000 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
  • सोयाबीन दाना – 5,540-5,640 रुपये प्रति क्विंटल।
  • सोयाबीन लूज- 5,285-5,305 रुपये प्रति क्विंटल।
  • मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

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