शिमला स्थित सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (CPRI) ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसमें आलू के कचरे और छिलकों से इथेनॉल बनाया जाएगा। यह इथेनॉल पर्यावरण के लिए कारगर और सस्ता इंधन साबित हो सकता है। खबरों के मुताबिक, सीपीआरआई जल्द ही इस तकनीक का पायलट प्लांट शुरू करने जा रहा है, जिससे आलू के कचरे से इंधन उत्पादन का परीक्षण किया जाएगा।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश है। आलू की कुल उपज का लगभग 10-15% हिस्सा खराब हो जाता है या बर्बाद हो जाता है, जिससे यह इथेनॉल उत्पादन के लिए आदर्श फीडस्टॉक के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले इथेनॉल का उत्पादन ज्यादातर गन्ने और मक्का से होता रहा है, लेकिन अब आलू इस लिस्ट में जुड़ सकता है। राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति में भी खराब हुए आलू को इथेनॉल बनाने के लिए उपयुक्त फीडस्टॉक बताया गया है।
सीपीआरआई के वैज्ञानिक धर्मेंद्र कुमार ने बताया, “भारत में आलू की ठंडी भंडारण सुविधाओं का सबसे बड़ा नेटवर्क है और आलू के कचरे की भारी मात्रा इथेनॉल उत्पादन के लिए उपयुक्त है।”
भारत में आलू उत्पादन और बर्बादी
भारत हर साल करीब 56 मिलियन टन आलू का उत्पादन करता है। इसमें से लगभग 8-10% आलू चिप्स, फ्राइज और अन्य प्रसंस्कृत उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है। वहीं, कुल उत्पादन का 20-25% हिस्सा बर्बाद हो जाता है, जो करीब 11-14 मिलियन मीट्रिक टन तक होता है। इसका कारण है भंडारण की खराब सुविधाएं, ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कतें और अनुचित हैंडलिंग।
पायलट प्लांट कहाँ लगेगा?
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पायलट प्लांट उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल या आलू प्रसंस्करण क्षेत्रों जैसे गुजरात में लगाया जा सकता है, क्योंकि यहाँ आलू का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इस प्लांट में आलू के कचरे और घटिया आलू का इस्तेमाल करके इथेनॉल उत्पादन किया जाएगा।
आलू से इथेनॉल कैसे बनेगा? वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू के प्रसंस्करण प्लांट में आलू छीलने के बाद जो स्टार्च और छिलके बचते हैं, उनका उपयोग इथेनॉल बनाने में किया जाएगा। आलू की छीलाई के बाद पानी में मौजूद स्टार्च भी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाएगा।
क्यों है यह योजना अहम? आलू से इथेनॉल बनाना न केवल कचरे का सही इस्तेमाल है, बल्कि यह भारत के लिए एक नया और सस्ता इंधन विकल्प भी हो सकता है। इससे न केवल इंधन के आयात पर निर्भरता कम होगी, बल्कि पर्यावरण को भी बड़ा फायदा मिलेगा।