अपने देश में चुनाव से पहले सारी सरकारें सारे लोगों को नौकरी मुहैया कराती हैं, चुनाव होने के बाद नियुक्ति पत्र देते हैं, और अगला चुनाव होने तक फिर से सारे लोगों को नौकरी देने का दावा करते हैं। समझ में नहीं आता कि मात्र 5 साल में लोग कैसे रोजगार पाते हैं और बेरोजगार हो जाते हैं।
असलियत यह है कि भारत के बहुतायत लोग अरब देशों में मजदूरी कर रहे होते हैं। 45 डिग्री और 50 डिग्री के तापमान पर अपनी हड्डियां कल आ रहे होते हैं ताकि महज 10000 से ₹15000 घर भेजे जा सके। इन रुपयों से दाल रोटी चलती है और नमक उधार लेकर चलानी पड़ती है।
अगली पीढ़ी को अच्छे शिक्षा के लिए शायद उतने पैसे नहीं मिलते हैं इसलिए दसवीं पास होने के साथ ही कोई भी छोटा-मोटा कोर्स करके या बच्चे फिर से अरब देश में मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं। कहने को तो लोग दुबई और अबू धाबी जैसे शहरों में नौकरी कर रहे होते हैं लेकिन इसकी असलियत अरब देशों में बैठे कामगार ही समझ पाते हैं।
बिहार के प्रवासी का दुबई में मौत
बिहार के दरभंगा से ताल्लुक रखने वाले एक भारतीय प्रवासी का देहांत दुबई में एक दुर्घटना क्रम के दौरान 28 अप्रैल को हो गया। प्रियांशु रंजन नाम के इस कामगार के देहांत होने के बाद घर पर लोगों के हाल बेहाल हो चुके हैं।
प्रियांशु रंजन की बहन साक्षी प्रिया ने भारत के विदेश मंत्रालय समेत दूतावास इत्यादि को इस बात की जानकारी देते हुए गुहार लगाया है कि वह उनके भाई के पार्थिव शरीर को भारत वापस लाने में मदद करें।दुबई पुलिस पार्थिव शरीर को तब तक नहीं छोड़ेगी जब तक की दुर्घटना के अनुसंधान और अन्य फॉर्मेलिटी पूरी ना हो जाए।