क्या महंगाई के मामले में मामला हाथ से निकल रहा है? परिस्थितियां कुछ ऐसी ही इशारा कर रही हैं. देश की अर्थव्यवस्था को बुधवार को खुदरा महंगाई और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों के रूप में दोहरे झटके का सामना करना पड़ा.
आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते खुदरा महंगाई पांच महीने के सबसे ऊपरी स्तर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि औद्योगिक उत्पादन पिछले 18 माह में पहली बार घट गया. चिंता की बात ये है कि खुदरा महंगाई लगातार 9वें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो से छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. ऐसे में सवाल है कि आरबीआई आगे क्या करेगा. एक नजर में जवाब तो यही है कि रेपो रेट बढ़ाएगा. और क्या करेगा आरबीआई, आइए जानते हैं.
सरकार को देना होगा जवाब
महंगाई के लगातार नौवें महीने संतोषजनक स्तर से ऊपर रहने के बीच रिजर्व बैंक को अब केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर इसका विस्तार से कारण बताना होगा. रिपोर्ट में यह बताना होगा कि महंगाई को निर्धारित दायरे में क्यों नहीं रखा जा सका और उसे काबू में लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.
रिजर्व बैंक के कानून के तहत अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया गया है, तो आरबीआई को केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर उसका कारण और महंगाई को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से जानकारी देनी होती है. मॉनिटरी पॉलिसी के 2016 में लागू होके बाद से यह पहली बार होगा कि आरबीआई को रिपोर्ट के जरिये सरकार को अपने कदमों के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी
अलग से होगी MPC की बैठक
केंद्र सरकार की तरफ से रिजर्व बैंक को मिली जिम्मेदारी के तहत आरबीआई को खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. अब मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) के सचिव को आरबीआई कानून के तहत इस बारे में चर्चा के लिए एमपीसी की अलग से बैठक बुलानी होगी और रिपोर्ट तैयार कर उसे केंद्र सरकार को भेजना होगा. एमपीसी की बैठक में खुदरा महंगाई पर गौर किया जाता है.
एमपीसी की एक दिन की बैठक दिवाली के बाद हो सकती है क्योंकि केंद्रीय बैंक के वरिष्ठ अधिकारी इस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की बैठकों में भाग लेने के लिए अमेरिका में हैं. पिछले महीने, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि महंगाई लक्ष्य में चूक को लेकर केंद्र को भेजे जानी वाली रिपोर्ट दो पक्षों के बीच का गोपनीय मामला है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.
कामकाज पर उठेंगे सवाल
अगर महंगाई औसतन लगातार तीन तिमाहियों तक निर्धारित ऊपरी सीमा से अधिक या निचली सीमा से नीचे रहती है, इसे आरबीआई की तरफ से महंगाई को निर्धारित दायरे में रखने को लेकर मिली जिम्मेदारी में चूक माना जाएगा. केंद्रीय बैंक महंगाई को काबू में लाने के लिए मई से ही नीतिगत दर यानी कि रेपो रेट में वृद्धि कर रहा है. उसने अबतक नीतिगत दर 1.9 प्रतिशत बढ़ाई है जिससे रेपो दर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है.
रेपो रेट में वृद्धि का विकल्प
महामारी के शुरुआती महीनों में तीन तिमाही से अधिक समय तक महंगाई लक्ष्य के दायरे से बाहर रही थी. लेकिन लॉकडाउन के कारण आंकड़ा जुटाने में तकनीकी कमियों के कारण उस समय आरबीआई को रिपोर्ट नहीं देनी पड़ी थी. इस बार ऐसा नहीं होगा और आरबीआई को रिपोर्ट देनी होगी. अगला कदम रेपो रेट में बढ़ोतरी का है. माना जा रहा है कि दिसंबर में आरबीआई फिर एक बार रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है. पूरी दुनिया में जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और उसे काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, उसे देखते हुए भारत में भी इसमें वृद्धि जारी है. इससे लोन महंगा होने की संभावना है और ग्रोथ पर भी उलटा असर होने की आशंका है
9% तक हो जाएगा FD
AU Small Finance Bank FD For Senior Citizen (for amounts less than INR 2 Crore)*
Applicable Interest Rates on Fixed Deposits w.e.f. 10th October, 2022
Tenure Bucket | Interest Rates | Interest Rates (Annualized) |
7 Days to 1 Month 15 Days | 4.25% | – |
1 Month 16 Days to 3 Months | 4.75% | – |
3 Months 1 Day to 6 Months | 5.50% | 5.61% |
6 Months 1 Day to 12 Months | 6.35% | 6.50% |
12 Months 1 Day to 15 Months | 7.60% | 7.82% |
15 Months 1 Day to 18 Months | 7.45% | 7.66% |
18 Months 1 Day to 24 Months | 7.45% | 7.66% |
24 Months 1 Day to 36 Months | 8.00% | 8.24% |
36 Months 1 Day to 45 Months | 8.00% | 8.24% |
45 Months 1 Day to less than 60 Months | 7.45% | 7.66% |
60 Months to 120 Months | 7.45% | 7.66% |
अगर महंगाई पर कंट्रोल करने के लिए आरबीआई रेपो रेट में बदलाव करता है और अगर इसे 0.5% भी बढ़ाता है. तो NBFC और Small Finance Bank के द्वारा दिया जाने वाला ब्याज दर फिक्स डिपॉजिट पर 9% के आसपास या उससे थोड़ा ऊपर और जा सकता है. ब्याज दरों में बदलाव करने से बैंकों के पास आम जनों के द्वारा डिपॉजिट किए जाने वाले पैसे बढ़ेंगे और बैंक अपना कारोबार महंगाई के दौर में भी जारी रख सकेगा.