राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार ऑनलाइन गेम खेलने में पूरे देश में सबसे आगे है। राज्य के 78.65% किशोर (7 से 17 साल के आयुवर्ग) रोजाना ऑनलाइन गेम खेलते हैं, जिसमें वे 7 से 8 घंटे गेमिंग में बिताते हैं। सर्वेक्षण जुलाई से अगस्त 2024 के बीच किया गया, जिसमें 2 लाख बच्चों की भागीदारी थी। बिहार के बाद उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बच्चे हैं, जहां 75% किशोर ऑनलाइन गेम खेलते हैं।
बच्चों पर गेमिंग का प्रभाव
इस सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि बच्चों की शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर ऑनलाइन गेमिंग का गंभीर असर पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी 2018 में गेमिंग एडिक्शन को मानसिक बीमारी के रूप में मान्यता दी थी, जिसे “गेमिंग डिसऑर्डर” कहा जाता है। इस सर्वे में पाया गया कि बिहार के करीब 50% बच्चे मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं, जबकि 20% बच्चे ऑनलाइन गेमिंग के कारण स्कूल की परीक्षा भी नहीं दे पाते।
आर्थिक नुकसान और कर्ज
ऑनलाइन गेमिंग के कारण बच्चे केवल मानसिक रूप से ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी प्रभावित हो रहे हैं। लगभग 48% बच्चे खतरनाक गेम जैसे ब्लू व्हेल चैलेंज, टाइड पॉड चैलेंज, और चोकिंग गेम खेलते हैं, जिससे उनमें मानसिक तनाव और असफलता की भावना बढ़ रही है। कुछ बच्चे तो इस लत के चलते कर्ज में भी डूब रहे हैं, और गेम खेलते रहने के लिए उधार लेना शुरू कर देते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
लगातार लंबे समय तक बैठने और गेम खेलने के कारण बच्चों में कमर, सिर, और कंधे में दर्द जैसी शारीरिक समस्याएं भी देखने को मिली हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (AAP) की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को रोजाना केवल एक घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। इसके अलावा, बच्चों को बाहर खेलने और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करना बहुत ज़रूरी है ताकि उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत संतुलित रहे।