अनाज की थाली में कमी, फल और ड्राई फ्रूट्स पर खर्च बढ़ा. खाने की आदतें बदल रहीं अब देश में।

नई दिल्ली। लोग के खान-पान का तरीका तेजी से बदल रहा है। पिछले कुछ सालों में परंपरागत भोजन की आदतें काफी हद तक छूटती दिख रही हैं। इस बदलाव का असर लोगों की थाली में भी नजर आ रहा है।

घटता अनाज उपभोग

नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक, पिछले दो दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति अनाज का मासिक उपभोग तीन किलोग्राम कम हो गया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में यह कमी दो किलोग्राम की रही। 1999-2000 के मुकाबले 2022-23 में अनाज का सेवन ग्रामीण क्षेत्रों में 25 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 20 फीसदी कम हुआ है।

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर

ग्रामीण क्षेत्र प्रति व्यक्ति प्रति माह (किग्रा):

  • 1999-00: 12.72
  • 2004-05: 12.12
  • 2011-12: 11.23
  • 2022-23: 9.61

 

शहरी क्षेत्र प्रति व्यक्ति प्रति माह (किग्रा):

  • 1999-00: 10.42
  • 2004-05: 9.94
  • 2011-12: 9.32
  • 2022-23: 8.05

 

बढ़ा खर्च

लोग अब अनाज की जगह अधिक पौष्टिक और रेडी टू ईट फूड्स को तरजीह दे रहे हैं। इनमें अंडा, फिश, मीट, फल, ड्राई फ्रूट्स और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में फल और मेवों पर खर्च:

  • अनाज पर खर्च 185 रुपये, कुल व्यय का 4.91%
  • फल-मेवों पर खर्च 3.73%, प्रसंस्कृत खाद्य पर 9.62%
  • अंडा, मछली, मांस पर 4.91%

 

शहरी क्षेत्रों में बदलाव

शहरों में भी यही ट्रेंड नजर आ रहा है। यहाँ अनाज पर खर्च कम होकर 235 रुपये रह गया है, जो कुल व्यय का 3.64% है।

शहरी क्षेत्रों में फल और मेवों पर खर्च:

  • प्रसंस्कृत खाद्य पर खर्च 10.64%
  • फल-मेवों पर 3.81%
  • अंडा, मछली, मांस पर 3.57%

 

घटती चीनी, नमक और तेल की खपत

एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में दूध, दाल और सब्जियों पर खर्च कम हो रहा है। चीनी और नमक पर होने वाला खर्च भी घट रहा है। ग्रामीण इलाकों में यह खर्च 2.60% से घटकर 0.93% रह गया है।

 

बिहार से हूँ। बिहार होने पर गर्व हैं। फर्जी ख़बरों की क्लास लगाता हूँ। प्रवासियों को दोस्त हूँ। भारत मेरा सबकुछ हैं। Instagram पर @nyabihar तथा lov@gulfhindi.com पर संपर्क कर सकते हैं।