केंद्र सरकार वित्त मंत्रालय के स्तर पर फिर से तीन सार्वजनिक सामान्य बीमा कंपनियों — ओरिएंटल इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस — के विलय के पुराने प्रस्ताव पर तेजी से सोच रहा है। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि इन कंपनियों की आर्थिक हालत पहले से बेहतर हुई है।
सरकार पहले भी इन कंपनियों को बचाने के लिए 2019-20 से 2021-22 के बीच कुल ₹17,450 करोड़ की पूंजी दे चुकी है और 2020 में तत्काल ₹12,450 करोड़ अतिरिक्त दी थी। अब मंत्रालय यह देख रहा है कि अगर इन तीनों को एक इकाई में मिला दिया जाए तो संचालन सस्ता होगा और दक्षता बढ़ेगी। निजीकरण का प्रस्ताव भी अब भी विचाराधीन है।
यह बदलाव बीमा ग्राहकों, कंपनियों के कर्मचारियों और बीमा बाजार पर असर डाल सकता है। विलय से कुछ प्रक्रियाएँ एक जैसी होंगी और लागत घट सकती है, जबकि निजी और विदेशी निवेश बढ़ने से प्रतिस्पर्धा में बदलाव आ सकता है। आम लोगों के लिए इसका असर बीमा प्रीमियम, कवर और सेवा के तरीके पर देखने को मिल सकता है।
काम की डिटेल में बताया गया है कि 2021 में संसद ने सरकार की न्यूनतम 51% हिस्सेदारी रखने की अनिवार्यता हटाने वाला संशोधन पास किया था। अब सरकार शीतकालीन सत्र में FDI की सीमा 74% से 100% करने का बिल लाने की योजना बना रही है। संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक है और इसमें 15 कार्य दिवस होंगे।
आगे क्या होगा: वित्त मंत्रालय अभी प्राथमिक मूल्यांकन कर रहा है, कोई अंतिम फैसला अभी नहीं हुआ है। निजीकरण के विकल्पों पर भी काम जारी है और FDI बढ़ाने वाला बिल इसी शीतकालीन सत्र में पेश होने की उम्मीद जताई जा रही है।
- तीन सरकारी सामान्य बीमा कंपनियों के विलय पर फिर विचार चल रहा है।
- इन कंपनियों को 2019-22 में कुल ₹17,450 करोड़ पूंजी दी गई थी।
- 2020 में तुरंत अतिरिक्त ₹12,450 करोड़ डाला गया था।
- 2021 में सरकार की 51% अनिवार्यता हटाई जा चुकी है।
- FDI सीमा 74% से 100% करने का बिल शीतकालीन सत्र में लाया जा सकता है।




