केंद्र सरकार कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में योगदान के लिए न्यूनतम मूल वेतन सीमा में बढ़ोतरी कर सकती है। इसे 15,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये किया जा सकता है। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है। माना जा रहा है कि 23 जुलाई को पेश होने वाले बजट में इसका ऐलान हो सकता है।
2014 के बाद नियमों में बदलाव
बताया जा रहा है कि कर्मचारियों का सामाजिक सुरक्षा दायरा बढ़ाने के लिए मंत्रालय 10 साल बाद नियमों में संशोधन की तैयारी कर रहा है। इससे पहले 01 सितंबर 2014 को वेतन सीमा 6,500 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये की गई थी। हालांकि, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) में वेतन की सीमा इससे ज्यादा है, जहां साल 2017 से ही 21,000 की उच्च वेतन सीमा है। सरकार दोनों सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत वेतन सीमा को एक जैसा करने पर सहमत है।
पेंशन कोष में बढ़ोतरी
वर्तमान में मूल वेतन सीमा 15,000 रुपये होने पर कर्मचारी और नियोक्ता का प्रत्येक योगदान 1800 रुपये है। इस में से नियोक्ता के योगदान में से कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में 1,250 रुपये जाते हैं, और बाकी 750 रुपये पीएफ खाते में जाते हैं। नई वेतन सीमा 25,000 रुपये होने पर प्रत्येक का योगदान 3000 रुपये हो जाएगा। तब नियोक्ता के योगदान में से 2082.5 रुपये पेंशन कोष और 917.5 रुपये पीएफ खाते में जाएंगे।
मौजूदा योगदान का आँकड़ा
मौजूदा नियमों के तहत कर्मचारी और नियोक्ता दोनों ईपीएफ खाते में मूल वेतन, महंगाई भत्ता और प्रतिधारण भत्ता (यदि कोई हो) का 12-12 फीसदी का समान योगदान करते हैं। जहां कर्मचारी का पूरा योगदान भविष्य निधि खाते में जमा किया जाता है, वहीं नियोक्ता के योगदान का 8.33 फीसदी कर्मचारी पेंशन योजना में जाता है और शेष 3.67 फीसदी पीएफ खाते में जमा किया जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी की अर्थशास्त्रियों से मुलाकात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों से मुलाकात करेंगे और आगामी बजट के लिए उनके विचार तथा सुझाव सुनेंगे। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। अर्थशास्त्रियों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों के अलावा प्रधानमंत्री की बैठक में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी और अन्य सदस्य भी शामिल होंगे।
एमएसएमई के भुगतान नियमों में ढील के आसार
सरकार बड़ी कंपनियों को वस्तुओं व सेवाओं की खरीद के 45 दिन के भीतर एमएसएमई को भुगतान करने की आवश्यकता में ढील दे सकती है। पिछले वर्ष के बजट में नया खंड जोड़ा गया था। इसके अनुसार, यदि कोई बड़ी कंपनी किसी एमएसएमई को समय पर भुगतान नहीं करती है तो वह उस व्यय को अपनी कर योग्य आय से नहीं घटा सकती है।