पिछले 10 वर्षों में भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोगों की संख्या में लगभग 67% की बढ़ोतरी हुई है। 2014 में जहां 1,29,328 लोगों ने भारतीय नागरिकता का त्याग किया था, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 2,16,219 हो गई। सरकार का कहना है कि इसके पीछे लोगों के व्यक्तिगत कारण होते हैं, और इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
नागरिकता छोड़ने के पीछे मुख्य कारण:
- विदेशों में नौकरी या बेहतर अवसर: कई लोग विदेशों में रोजगार के बेहतर अवसर मिलने के कारण वहां स्थायी रूप से बस जाते हैं।
- व्यापार और कारोबारी संभावनाएं: कुछ लोग व्यापार के लिए विदेशों का रुख करते हैं और वहीं स्थायी नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं।
- विवाह: विदेशी नागरिकों से विवाह के कारण भी कई लोग भारतीय नागरिकता छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता ले लेते हैं।
प्रमुख देश जहाँ भारतीय नागरिकता त्यागी जा रही है:
हालांकि, विदेश मंत्रालय ने नागरिकता छोड़ने के बाद किस देश की नागरिकता ली गई, इसके आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन अनुमान के अनुसार, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भारतीयों के बीच सबसे लोकप्रिय विकल्प बनते जा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह इन देशों में नागरिकता प्राप्त करने के नियमों का सरल होना है। इसके अलावा, अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूज़ीलैंड, और मॉरीशस भी ऐसे देश हैं जहां भारतीय नागरिकता छोड़ने के बाद लोगों ने नई नागरिकता ली है।
सरकार का नजरिया:
भारत सरकार इसे नकारात्मक रूप में नहीं देख रही है। बल्कि, वह इसे एक सकारात्मक विकास मानती है। विदेशों में बसे हुए सफल और समृद्ध प्रवासी भारतीयों को देश की एक महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में देखा जा रहा है। सरकार का मानना है कि ये प्रवासी भारतीय वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं और देश के विकास में योगदान दे सकते हैं।
शिक्षा और रोजगार:
वर्तमान में 13 लाख से अधिक भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर वहीं नौकरी करके बसने का मन बनाते हैं। इसके पीछे आर्थिक समृद्धि और बेहतर जीवनस्तर की आकांक्षा होती है।
सरकार का यह दृष्टिकोण है कि विदेशों में बसे हुए भारतीय न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध होते हैं, बल्कि वे देश के लिए एक बड़ी ताकत भी साबित होते हैं।