सऊदी अरब फांसी की सजा देने के मामले में दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले बहुत आगे निकल गया है। साल 2025 में अब तक इस देश में 200 लोगों को फांसी दी गई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, अगर यही रफ्तार रही तो 2024 का रिकॉर्ड भी टूट सकता है। पिछले साल वहां 345 लोगों को फांसी दी गई थी, जो अब तक की सबसे ज्यादा संख्या थी।
इतनी ज्यादा फांसी क्यों दी जा रही है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, इसकी सबसे बड़ी वजह “ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई” है जो सऊदी अरब ने 2023 में शुरू किया था। 2022 में नशीली दवाओं के मामलों में फांसी बंद कर दी गई थी, लेकिन फिर से शुरू कर दी गई। 2024 में ड्रग्स से जुड़े मामलों में अब तक 144 लोगों को फांसी दी गई है।
ज्यादातर फांसी विदेशी लोगों को दी गई है फांसी
जून महीने में ही 37 लोगों को ड्रग्स के मामलों में फांसी दी गई, जिनमें से 34 विदेशी थे जैसे कि मिस्र, इथियोपिया, पाकिस्तान, नाइजीरिया, सीरिया आदि के लोग। मानवाधिकार संगठन कह रहे हैं कि विदेशी नागरिकों को सही कानूनी प्रक्रिया नहीं मिलती और उन पर ज्यादती होती है।
क्या फांसी से ड्रग्स की तस्करी कम हो रही है?
सरकार का कहना है कि इससे नतीजे मिल रहे हैं और तस्करों को सख्त सजा मिल रही है। लेकिन रिपोर्टों में यह साफ नहीं बताया गया है कि इससे अपराध में कितनी कमी आई है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि मौत की सजा से कोई पक्का फायदा नहीं दिखता।
सऊदी अरब की छवि पर क्या असर पड़ रहा है?
सऊदी अरब दुनिया में खुद को एक खुले और आधुनिक देश के रूप में दिखाना चाहता है, खासकर Vision 2030 के तहत। वो पर्यटन बढ़ाने, खेल आयोजन (जैसे 2034 वर्ल्ड कप) लाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन मौत की सजा और मानवाधिकार उल्लंघन की खबरें इसकी छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं।
अमेरिका और दुनिया की प्रतिक्रिया क्या है?
2018 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब की आलोचना हुई थी। लेकिन अमेरिका जैसे देश अब व्यापार पर ज्यादा ध्यान देते हैं, और मानवाधिकार के मुद्दों पर सख्त रवैया नहीं अपना रहे हैं।




