देश की सबसे बड़ी रिफाइनर और ईंधन खुदरा विक्रेता इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) इस साल दिसंबर तक अपनी पनपत रिफाइनरी में कमर्शियल स्तर पर सतत एविएशन ईंधन (SAF) का उत्पादन शुरू करने की उम्मीद कर रही है। हाल ही में इस यूनिट को यूज्ड कुकिंग ऑयल से SAF उत्पादन के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्टिफिकेशन मिला है। IOC के चेयरमैन अर्विंदर सिंह सहने के अनुसार, इस कैलेंडर वर्ष के अंत तक IOC के पास सालाना 35,000 टन SAF उत्पादन की क्षमता होगी। यह तेल बड़े होटल चेन, रेस्टोरेंट्स और हल्दीराम जैसे मिठाई व स्नैक्स ब्रांड्स से लिया जाएगा, जहां कुकिंग ऑयल एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है।
सहने ने बताया कि यह क्षमता 2027 तक देश की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए निर्धारित 1% SAF ब्लेंडिंग की जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। फीडस्टॉक यानी इस्तेमाल किए गए तेल की आपूर्ति के लिए एग्रीगेटर्स को जोड़ा जाएगा। बड़ी होटल चेन से तेल इकट्ठा करना आसान है, लेकिन छोटे उपभोक्ताओं और घरेलू स्तर पर संग्रह की चुनौती बनी रहेगी।
इस हफ्ते की शुरुआत में IOC, भारत की पहली कंपनी बनी जिसे पनपत रिफाइनरी में SAF उत्पादन के लिए ISCC CORSIA सर्टिफिकेशन मिला। यह सर्टिफिकेशन अंतरराष्ट्रीय एविएशन में कार्बन ऑफसेटिंग और रिडक्शन स्कीम (CORSIA) के अनुरूप SAF उत्पादन की अनुमति देता है। यह कमर्शियल स्तर पर SAF बनाने के लिए अनिवार्य है। कंपनी का कहना है कि यह सर्टिफिकेशन अन्य घरेलू रिफाइनर और उद्योग जगत के लिए भी बेंचमार्क तय करेगा।
SAF एक तरह का बायोफ्यूल है जिसे टिकाऊ फीडस्टॉक से बनाया जाता है और इसकी केमिस्ट्री पारंपरिक एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) या जेट ईंधन जैसी होती है। यानी मौजूदा विमान इंजन आसानी से SAF-ATF मिश्रण पर चल सकते हैं। उदाहरण के लिए, एयरबस का कहना है कि उसके सभी विमान 50% SAF और पारंपरिक ईंधन के मिश्रण पर उड़ान भरने में सक्षम हैं। भारत की कई एयरलाइंस पहले ही SAF के साथ मिश्रित ईंधन पर टेस्ट फ्लाइट्स सफलतापूर्वक संचालित कर चुकी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, वैश्विक एविएशन इंडस्ट्री के डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में SAF की हिस्सेदारी 60% से अधिक हो सकती है।
सहने ने बताया कि चूंकि यूरोप में पहले से ही SAF ब्लेंडिंग अनिवार्य है, इसलिए यूरोपीय एयरलाइंस IOC के SAF की पहली खरीदार हो सकती हैं। कंपनी एक्सपोर्ट के अवसर भी तलाश रही है क्योंकि आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर SAF की मांग तेजी से बढ़ेगी।
वर्ष 2027 SAF को अपनाने के लिए अहम रहेगा, क्योंकि उस साल से CORSIA का अनिवार्य चरण शुरू होगा। इसके तहत एयरलाइंस को 2020 के स्तर से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को ऑफसेट करना होगा। SAF मिश्रित जेट ईंधन इसका एक प्रमुख समाधान होगा। भारत को भी 2027 से इस अनिवार्य चरण का पालन करना होगा। राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) ने शुरुआती लक्ष्य तय किए हैं—2027 से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में 1% SAF ब्लेंडिंग और 2028 में 2%। घरेलू उड़ानों के लिए ब्लेंडिंग मांडेट बाद में लागू होगा।
हालांकि, फिलहाल SAF की लागत सामान्य जेट ईंधन से करीब तीन गुना ज्यादा है। एयरलाइंस की लागत बढ़ने की आशंका को देखते हुए सरकार घरेलू उड़ानों पर SAF अनिवार्यता केवल 2027 या उसके बाद से ही लागू करने पर विचार कर रही है।
IOC ने फिलहाल यूज्ड कुकिंग ऑयल पाथवे पर SAF उत्पादन का सर्टिफिकेशन हासिल कर लिया है, लेकिन कंपनी अल्कोहल-टू-जेट पाथवे पर भी काम कर रही है, जिसमें एथनॉल को फीडस्टॉक के रूप में इस्तेमाल कर SAF बनाया जाएगा। भारत की अन्य कंपनियाँ भी अलग-अलग तकनीकों पर काम कर रही हैं, लेकिन सभी नई यूनिट्स को कमर्शियल उत्पादन शुरू करने से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्टिफिकेशन की आवश्यकता होगी।




