एनआरआई (भारतीय मूल के लोग जो विदेश में रहते हैं) उनके लिए प्रॉपर्टी खरीदने में दुबई और मुंबई के बीच चुनाव करना एक बड़ा फैसला है। दुबई अपनी आधुनिक इमारतों और टैक्स फायदों से आकर्षित करता है, जबकि मुंबई अपनी संस्कृति और लगातार बढ़ते बाज़ार से निवेशकों को खींचता है।
2025 में दोनों शहर निवेश के लिए अच्छे मौके दे रहे हैं, लेकिन कौन बेहतर रिटर्न देगा? आइए देखते हैं मांग, रिटर्न और रिस्क के हिसाब से।
दुबई का बाज़ार
दुबई की रियल एस्टेट मार्केट एनआरआई के लिए बेहद आकर्षक है क्योंकि यहां टैक्स नहीं है। किराये या बेचने पर होने वाली कमाई पर टैक्स नहीं लगता, जिससे निवेशकों को ज़्यादा फायदा होता है। किराये से मिलने वाला रिटर्न 5% से 11% तक है, जो दुनिया के कई बड़े शहरों से बेहतर है। दुबई में 1 बीएचके फ्लैट लगभग 1.5 मिलियन दिरहम (करीब 3.4 करोड़ रुपये) में मिलता है, जबकि मुंबई में ऐसे ही फ्लैट की कीमत 2–3 करोड़ रुपये होती है।
साथ ही, दुबई का “गोल्डन वीज़ा” भी आकर्षक है, जिसमें 2 मिलियन दिरहम से ज़्यादा निवेश करने पर 10 साल का रेज़िडेंसी मिल जाता है। पिछले कुछ सालों में दुबई में प्रॉपर्टी की कीमतें 15-20% तक बढ़ी हैं। यहां तेज़ी से प्रॉपर्टी खरीद-बेच (फ्लिप) करना आसान है, जो भारत की जटिल प्रक्रिया से अलग है।
लेकिन रिस्क भी हैं। 2025-26 में बड़ी संख्या में नई प्रॉपर्टी बाज़ार में आ रही है, जिससे कीमतें 10-15% तक गिर सकती हैं अगर डिमांड कम हुई। तेल की कीमतों या राजनीति में बदलाव भी बाज़ार को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, मेंटेनेंस चार्ज बहुत ज़्यादा हैं और किरायेदार संभालना दूर से मुश्किल हो जाता है।
मुंबई का बाज़ार
मुंबई का बाज़ार भरोसे पर टिका हुआ है। 2025 में यहां प्रॉपर्टी की कीमतें 6.5% तक बढ़ने का अनुमान है। मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक और नई मेट्रो लाइनों जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स से बाज़ार को और बढ़ावा मिलेगा। लग्ज़री प्रॉपर्टी (4 करोड़ से ऊपर) की बिक्री 2025 की शुरुआत में 85% तक बढ़ गई, और इसमें एनआरआई व अमीर निवेशकों का बड़ा योगदान है।
मुंबई में किराये से रिटर्न 2-4% है, जो दुबई से कम है, लेकिन यहां किरायेदार हमेशा मिल जाते हैं क्योंकि यह भारत की आर्थिक राजधानी है। एनआरआई यहां से हर साल 1 मिलियन डॉलर तक बाहर भेज सकते हैं (टैक्स काटकर)। साथ ही, RERA जैसे कानून बाज़ार को पारदर्शी बनाते हैं। नवी मुंबई और मलाड जैसे नए इलाके निवेश के लिए बेहतर माने जा रहे हैं।
लेकिन चुनौतियां भी हैं। किराये पर 30% टैक्स लगता है, स्टाम्प ड्यूटी भी बहुत ज़्यादा है। प्राइम लोकेशन की प्रॉपर्टी बहुत महंगी है और ज़मीन की कमी से सबर्बन इलाकों में ओवरसप्लाई का डर है। कई प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं होते और बाढ़ या प्रदूषण जैसी समस्यायें किरायेदारों को परेशान करती हैं। एनआरआई के लिए बिना भरोसेमंद लोकल पार्टनर के प्रॉपर्टी मैनेज करना मुश्किल होता है।
नतीजा
अगर कोई एनआरआई जल्दी और टैक्स-फ्री रिटर्न चाहता है तो दुबई सही विकल्प है। वहीं, अगर कोई लंबी अवधि का निवेश और भावनात्मक जुड़ाव चाहता है तो मुंबई बेहतर है। भारत की 6-7% आर्थिक वृद्धि भी मुंबई को मज़बूत बनाती है।




