क़तर ने छह महीने पहले ही बड़े सुधार लागू किए थे और शूरा काउंसिल की सिफ़ारिशों को लागू किए जाने पर ये सुधार एक तरह से ख़ारिज हो जाएँगे.
क़तर में बड़ी तादाद में भारतीय लोग काम करते हैं और इन सुधारों के आने के बाद इस तबके को काफ़ी राहत मिली थी. लेकिन, अब शूरा काउंसिल की सिफ़ारिशों में विदेशी कर्मचारियों को लेकर किए गए सुधारों में बदलावों की बात की गई है.
क्या हैं शूरा काउंसिल की सिफारिशें?
इन सिफ़ारिशों में मज़दूर जिस कंपनी में आ रहा है, उसके वित्तीय और क़ानूनी दर्जे को सुनिश्चित किए जाने की बात की गई है.
इन सिफ़ारिशों में ये भी कहा गया है कि क़तर में रहने के दौरान कोई भी कर्मचारी तीन से अधिक बार कंपनी नहीं बदल सकता है.
एक सिफ़ारिश ये भी की गई है कि हर साल किसी एक कंपनी के 15 फ़ीसदी कर्मचारियों को ही कंपनी बदलने की इजाज़त दी जा सकती है.
कंपनी या नियोक्ता बदलने की मंज़ूरी किसी एक कंपनी के लिए एक साल में उसके 15 फ़ीसदी से ज़्यादा कर्मचारियों को नहीं मिलनी चाहिए.
इसमें ये भी कहा गया है कि सरकारी या अर्ध-सरकारी कॉन्ट्रैक्ट को लागू करने के लिए मज़दूरों को नियुक्त करते समय कॉन्ट्रैक्ट के पूरा होने की अवधि से पहले कंपनी बदलने की मंज़ूरी तब तक नहीं मिलेगी, जब तक कि इसके लिए कंपनी अपनी मंज़ूरी न दे दे. इसमें ये भी कहा गया है कि वीज़ा को कॉन्ट्रैक्ट से लिंक किया जाना चाहिए.
सिफ़ारिश के मुताबिक़, क़तर छोड़कर जाने वालों को कंपनी से एग्जिट परमिट लेना अब 10 फ़ीसदी वर्कर्स के लिए ज़रूरी होना चाहिए. पहले ये शर्त केवल पाँच फ़ीसदी कर्मचारियों के लिए ही थी.
शूरा काउंसिल की इन विवादित सिफ़ारिशों में कहा गया है कि कॉन्ट्रैक्ट अवधि के दौरान कोई माइग्रेंट वर्कर अपनी नौकरी नहीं बदल पाएगा.
इसके अलावा, इसमें किसी वर्कर के नौकरी बदलने की संख्या पर भी पाबंदी लगा दी गई है. साथ ही इसमें किसी कंपनी के कितने फ़ीसदी वर्कर्स को नौकरी बदलने की मंज़ूरी दी जा सकती है, इसे लेकर भी सिफ़ारिश की गई हैं.
इसमें ऐसे एग्जिट परमिट की ज़रूरत वाले वर्कर्स की संख्या को भी बढ़ा दिया गया है.
साथ ही इन सिफ़ारिशों में मांग की गई है कि अवैध मज़दूरों पर सख़्त कार्रवाई की जाए.
शूरा काउंसिल की इन सिफ़ारिशों को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है