बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चनपटिया सीट पर सबकी निगाहें एक नाम पर थीं—
त्रिपुरारी कुमार तिवारी उर्फ़ मनीष कश्यप, जिन्हें सोशल मीडिया पर “सन ऑफ बिहार”, “यूट्यूब रिपोर्टर” और “जमीनी मुद्दों की आवाज़” के रूप में पहचान मिली है।
लेकिन नतीजे से साफ हो गया कि मनीष कश्यप की लोकप्रियता वोटों में तब्दील नहीं हो सकी।
गिनती लगभग पूरी हो चुकी है और वे स्पष्ट रूप से तीसरे नंबर पर हैं।
कौन आगे, कौन पीछे?—22/24 राउंड तक की स्थिति
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अभिषेक रंजन (INC) – 80,554 वोट
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उमाकांत सिंह (BJP) – 79,726 वोट
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मनीष कश्यप (Jan Suraaj) – 34,401 वोट
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बाकी सभी उम्मीदवार — 2,000 से नीचे
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NOTA – 2,374 वोट
मतलब यह कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला है, लेकिन मनीष कश्यप उनसे 46,000+ वोट पीछे चल रहे हैं।

मनीष कश्यप का जादू क्यों नहीं चला?
1. सोशल मीडिया की लोकप्रियता ≠ चुनावी मशीनरी
लाखों फॉलोअर्स और वायरल वीडियो चुनावी ज़मीनी नेटवर्क का विकल्प नहीं बनते।
चनपटिया जैसी सीट पर जातीय समीकरण, पंचायत स्तर का प्रबंधन, बूथ माइक्रो-मैनेजमेंट और पुरानी राजनीतिक जड़ें निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
कश्यप के पास इनमें से कुछ भी संगठित रूप में नहीं था।
2. जन सुराज की लहर सीट तक नहीं पहुँची
PK की पार्टी जन सुराज कई जगह चर्चा में जरूर रही, लेकिन संगठन कमजोर रहा और जमीनी पकड़ बहुत सीमित दिखी। नतीजा—मतदाता इसे “मुख्य लड़ाई” में ही नहीं मान रहे थे।
3. INC बनाम BJP की सीधी लड़ाई में तीसरा चेहरा दब गया
चनपटिया में लड़ाई शुरू से ही दो तरफा थी:
अभिषेक रंजन बनाम उमाकांत सिंह।
ऐसे माहौल में तीसरे विकल्प को जगह कम मिलती है।
4. पिछले विवादों का असर पड़ा
कश्यप पिछली बार केंद्रीय एजेंसियों और पुलिस की कार्रवाई के कारण सुर्खियों में रहे थे।
कुछ लोगों के लिए वे “पीड़ित पत्रकार” बने,
लेकिन बड़ी संख्या में मतदाता इस विवाद को लेकर स्पष्ट नहीं थे।
इससे बीच का समर्थन उन्हें नहीं मिला।
5. लोकल नेतृत्व और जातीय आधार नहीं बन पाया
चनपटिया की राजनीति में कोर वोट-बेस बहुत महत्वपूर्ण है।
कश्यप के पास मजबूत जातीय क्लस्टर या पुरानी पंचायत-आधारित राजनीतिक टीम नहीं थी।
फिर भी 34,000 वोट — संकेत क्या है?
तीसरे नंबर पर होने के बावजूद 34 हजार वोट मामूली नहीं हैं।
यह बताता है कि—
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युवाओं में उनका प्रभाव है
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सोशल मीडिया का असर वास्तविक मतों में कुछ हद तक बदला
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अगर संगठन मज़बूत किया जाए, बड़े नेता के साथ गठबंधन हो, तो भविष्य में मौका बन सकता है
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि मनीष कश्यप के लिए यह हार से ज़्यादा सीख है।
आगे क्या?—राजनीति में बने रहेंगे या वापसी पत्रकारिता में?
यह चुनाव कश्यप की पहली बड़ी राजनीतिक परीक्षा थी।
अब आगे तीन रास्ते खुल सकते हैं—
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किसी बड़ी पार्टी से हाथ मिलाना
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जन सुराज में मजबूती से संगठन खड़ा करना
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फिर से जनसरोकार वाली रिपोर्टिंग में वापसी
उनके समर्थक अभी भी लिख रहे हैं—
“मनीष भाई हारे नहीं हैं, यह तो शुरुआत है।”




