बांग्लादेश की राजनीति का एक अहम अध्याय आज समाप्त हो गया। देश की पूर्व और पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने मंगलवार सुबह छह बजे अंतिम सांस ली। खालिदा जिया का जीवन एक साधारण गृहिणी से लेकर देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पद तक पहुंचने की एक असाधारण कहानी है। वह बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख थीं और उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में दो बार प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली।
‘शर्मीली गृहिणी’ से लेकर पति की हत्या के बाद पार्टी की कमान संभालने तक का सफर
खालिदा जिया के पति जियाउर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक थे, जो 1977 में देश के राष्ट्रपति बने। उस दौर में खालिदा जिया राजनीति से कोसों दूर थीं और उन्हें एक ‘शर्मीली गृहिणी’ के रूप में जाना जाता था, जो पूरी तरह अपने दो बेटों की परवरिश के प्रति समर्पित थीं। लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। साल 1981 में चटगांव में सेना के कुछ अधिकारियों ने उनके पति जियाउर रहमान की हत्या कर दी। पति की मौत तक सार्वजनिक जीवन में कोई रुचि न रखने वाली खालिदा जिया को परिस्थितियों ने राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया। पति के निधन के बाद वह बीएनपी की सदस्य बनीं और बाद में पार्टी का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया।
सैन्य तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई और मुस्लिम देश की दूसरी महिला शासक बनना
वर्ष 1982 में बांग्लादेश में सैन्य तानाशाही का दौर शुरू हुआ जो नौ साल तक चला। इस दौरान खालिदा जिया ने लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष किया। सेना ने बीच-बीच में चुनाव कराए, लेकिन खालिदा ने धांधली का आरोप लगाते हुए अपनी पार्टी को इन चुनावों से दूर रखा। उनके इस कड़े रुख के कारण उन्हें नजरबंद भी किया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और रैलियों के जरिए जनसमर्थन जुटाती रहीं। आखिरकर सेना को झुकना पड़ा। 1991 में हुए निष्पक्ष चुनावों में खालिदा जिया की पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और वह बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वह किसी भी मुस्लिम देश का नेतृत्व करने वाली दुनिया की दूसरी महिला थीं।
शिक्षा में सुधार और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उठाए गए ऐतिहासिक कदम
सत्ता संभालने के बाद खालिदा जिया ने देश की व्यवस्था में कई बड़े बदलाव किए। उन्होंने राष्ट्रपति पद की शक्तियों को कम करते हुए संसदीय प्रणाली को मजबूत किया। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य और निःशुल्क करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। हालांकि, पांच साल बाद वह अपनी प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना की अवामी लीग से चुनाव हार गईं, लेकिन साल 2001 में उन्होंने जोरदार वापसी की। इस्लामी पार्टियों के साथ गठबंधन कर उन्होंने संसद की दो-तिहाई सीटों पर कब्जा जमाया। अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए संसद में महिलाओं के लिए 45 सीटें आरक्षित करने का संवैधानिक संशोधन पेश किया और महिला साक्षरता को बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाया।
भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सजा और 2024 के विद्रोह के बाद मिली कानूनी राहत
खालिदा जिया का अंतिम राजनीतिक दौर उथल-पुथल भरा रहा। अक्टूबर 2006 में उन्होंने चुनाव से पहले पद छोड़ दिया, लेकिन देश में हिंसा भड़कने के कारण सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा और चुनाव टल गए। इसके बाद बनी अंतरिम सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की। एक साल बाद खालिदा जिया को जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने कई साल जेल और नजरबंदी में बिताए। हालांकि, 2024 में बांग्लादेश में हुए भारी जन-विद्रोह के बाद, जिसने शेख हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया, खालिदा जिया पर लगे सभी आरोप हटा दिए गए थे।
पश्चिम बंगाल में जन्म और 15 साल की उम्र में फौजी अफसर से विवाह की कहानी
बेगम खालिदा जिया का जन्म 1945 में अविभाजित भारत के पश्चिम बंगाल में हुआ था। 1947 के विभाजन के बाद उनका परिवार पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) चला गया। महज 15 साल की उम्र में उनका विवाह जियाउर रहमान से हुआ, जो उस समय सेना के एक युवा अधिकारी थे। 1971 में जियाउर रहमान ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ विद्रोह करते हुए बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की थी। बाद में 1977 में सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया और देश में राजनीतिक दलों व मीडिया को फिर से स्थापित किया। अपने पति की विरासत को आगे बढ़ाते हुए खालिदा जिया ने बांग्लादेश की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी।




