जिस केशव कुमार पाठक को लेकर पूरे बिहार में बवाल मचा हुआ है शायद उस व्यक्ति को आप कम जानते होंगे. मैं उस दौर से जान रहा हूं जब इंटरनेट मीडिया के माध्यम से कोई व्यक्ति वायरल नहीं होता था बल्कि उसके काम लोगों में चर्चा का विषय बन जाते थे.
मैं गोपालगंज बिहार से हूं और मैं उस वक्त का साक्षी हूं जब केके पाठक गोपालगंज के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के कुर्सी को संभाल रखे थे. उनके कड़े और सख्त तेवर ऐसे थे कि अंततः लालू यादव को अपने करीबियों को बचाने के लिए केके पाठक का तबादला करवाना पड़ा था.
जब गोपालगंज के डीएम के के पाठक थे तब मेरी उमर सातवें, आठवें नौवें क्लास में पढ़ने वाली रही थी. कोई सभी उच्च विद्यालय उस वक्त सही समय पर नहीं चलता था लेकिन केके पाठक कभी अभिभावक के भेष में तो कभी चपरासी के भेष में किसी भी स्कूल में दाखिल हो जाते थे और फिर आगे की जो कार्यवाही होती थी वह अगले दिन की अखबार में सबके लिए आश्चर्यचकित करने वाला होता था.
सख्त रवैया के कारण केके पाठक के कार्यकाल में गोपालगंज का कोई भी ऐसा स्कूल नहीं था जो अपने समय से आधे घंटे पहले शुरु ना हो जाता हो और समय खत्म होने के 1 घंटे बाद तक सारे क्रियाकलाप को अंजाम देने के बाद ही स्कूल प्रबंधन स्कूल से विदा लेता था.
केके पाठक केवल स्कूल ही नहीं बल्कि सामान्य प्रशासन में भी काफी चर्चा का विषय थे. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश पर जगह-जगह सड़क सुरक्षा को लेकर चेकिंग लगाए गए हैं और उस दौरान आलम यह हो गया कि बिना दो हेलमेट के कोई भी मोटरसाइकिल असवार सवारी नहीं करता था.
गोपालगंज क्षेत्र में हर जगह डीएम साहब का कुछ यूं आलम था कि जो प्रशासन के पास जाने को लेकर चप्पल किसने वाला काम समझते थे वह भी अपने फरियाद लेकर डीएम ऑफिस में पहुंचे हुए रहते थे. सबसे खास बात यह की सारे फरियादियों के लिए कुछ ना कुछ एक्शन जरूर मिल जाता था.
बिहार में जब शराब बंदी लागू हुआ तो उसे कड़ाई से पालन कराने के लिए जिम्मेदार केके पाठक को बनाया गया और केके पाठक के रवैया ने इतना सख्त रुख अपनाया कि इसके वजह से अंदरूनी दिक्कत मद्य निषेध विभाग में आने लगी. गोपालगंज के शराब कांड में केके पाठक ने इतना कड़ा रुख अपनाया था कि इलाके के सारे पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया.
एक बार की बात है कि बिहार के नेता सुशील मोदी ने अपने बयान में के के पाठक को लेकर निरंकुश और सनकी जैसे शब्द का प्रयोग किया था जिसको देखते हुए केके पाठक ने तुरंत लीगल नोटिस सुशील मोदी को भेज दिया था.
अब एक बार फिर से केके पाठक शिक्षा विभाग में आए हैं तो उनके एक्शन अलग रंग ला रहे हैं. हालांकि बिहार के मंत्री को यह रास नहीं आया और एक पत्र जारी कर दिया जिसके बाद से दोबारा से केके पाठक के एक्शन अखबारों की सुर्खियों में आ गए हैं.
अब जब शिक्षा विभाग को सुधारने के लिए केके पाठक अलग-अलग एक्शन ले रहे हैं और ढीले पेंच को कस रहे हैं तब सरकार के मंत्री कहते हैं कि केके पाठक ज्यादा नायक या रोबिन्हुड बनने की कोशिश ना करें।