एक निश्चित मात्रा में सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के शुल्क-मुक्त आयात की छूट के बाद बाकी तेलों का आयात प्रभावित होने की आशंका के कारण दिल्ली तेल- तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, सोयाबीन तेल तिलहन तथा कच्चे पामतेल (सीपीओ), पामोलीन के साथ-साथ सरसों तेल की कीमतों में बढ़त देखने को मिली.
वहीं मूंगफली तेल-तिलहन और बिनौला तेल के भाव पूर्व-स्तर पर बने रहे. बाजार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सरकार ने खाद्यतेल प्रसंस्करणकर्ताओं को अगले दो साल तक सालाना 20-20 लाख टन सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का शुल्क-मुक्त आयात करने की छूट दी है.
इसके बाद होने वाले आयात पर आयातकों को सात रुपये प्रति किलो के हिसाब से शुल्क अदा करना होगा. लेकिन कोटा वाले सस्ते आयातित तेल के मुकाबले बाकी आयातित तेलों के महंगा और गैर-प्रतिस्पर्धी होने के कारण आयातक नये सौदे नहीं खरीद रहे हैं. इसकी वजह से खाद्य तेलों में कम आपूर्ति (शॉर्ट सप्लाई) की स्थिति पैदा हो गई है और लगभग सभी खाद्य तेल सस्ता होने के बजाय महंगे हो गये हैं.
विदेशी बाजारों में गिरे खाद्य तेल के भाव
उन्होंने कहा कि खाद्य तेलों के दाम तेज होने के बाद भी देशी तेलों से कहीं सस्ते हैं. चार-पांच महीने पूर्व सूरजमुखी तेल का भाव लगभग 2,450 डॉलर प्रति टन था जो अब घटकर 1,300 डॉलर रह गया है. इसी तरह चार पांच माह पूर्व पामोलीन तेल का भाव 2,150 डॉलर प्रति टन था जो अब घटकर 850 डॉलर रह गया है. आयातित तेलों के भाव चार-पांच माह पहले के मुकाबले लगभग आधा से भी कम रह गये हैं.
40 रुपए और होने जा रहा हैं महँगा
सूत्रों ने कहा कि एक तेल का दाम महंगा होता है तो उसका असर बाकी खाद्यतेलों पर भी दिखता है जिससे तेल कीमतों में भी सुधार होता है. शुक्रवार की रात को खाद्यतेलों का आयात शुल्क मूल्य कम किया गया है लेकिन इसके बावजूद शॉर्ट सप्लाई के कारण तेल कीमतों में बढ़त आई है. सरकार द्वारा आयात शुल्क लगाने से किसानों को भी फायदा होगा क्योंकि उनकी उपज बाजार में खपेंगी. इस साल आयातित तेल से सरसों 20-30 रुपये प्रति लीटर सस्ता होने के बाद भी सारी सरसों की खपत नहीं हो पाई. ऐसे में इसके आयातित तेलों से लगभग 40 रुपये लीटर महंगा होने के बाद इसकी खपत हो पाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
प्रमुख तेल संगठन सोपा ने भी सरकार को आगाह किया था कि देश में पर्याप्त मात्रा में सोयाबीन की फसल है लेकिन ऐसे में आयात खोलने के बाद सोयाबीन के डीआयल्ड केक (डीओसी) की खपत भी मुश्किल होगी। सरकार को तत्काल अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए आयात शुल्क लगा देना चाहिये। इस फैसले से आयात बढ़ने के बाद उपभोक्ताओं को भी सस्ते में खाद्यतेल उपलब्ध होंगे।