जानवरों के काटने के 2 करोड़ मामले आते हैं हर साल,
देश में हर साल उपायों पर की विशेषज्ञों ने चर्चा जानवरों के काटने के तकरीबन 2 करोड़ मामले सामने आते हैं. इसका मुख्य कारण बेकाबू आवारा कुत्तों की आबादी और संक्रमित कुत्ते के काटने के बाद उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जागरुकता की कमी है. देश में हर साल 20,000 से अधिक लोगों को रेबीज से अपनी जान गंवानी पड़ती है. हालांकि, रेबीज पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली बीमारी है, लेकिन समय पर इलाज न होने पर यह जानलेवा साबित हो सकती है.
यह हैं लक्षण
इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, रेबीज से संक्रमित होने के बाद किसी व्यक्ति में छूने और सुनने की क्षमता प्रभावित होना, असामान्य व्यवहार, मितभ्रम, हाइड्रोफोबिया (पानी का डर) और अनिद्रा जैसे गंभीर परिणाम नजर आ सकते हैं, जो उसे कोमा में ले जा सकते हैं और मौत का कारण बन सकते हैं.
नए समाधान विकसित
विशेषज्ञों की टीम किए, प्रचार भी कर रहे साल 2030 तक कुत्ते के जरिए होने वाले रेबीज से मानव मौतों को समाप्त करने के लिए शोध और नवाचार-संचालित संगठन जाइडस ने रेबीज पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस में पेटेंट रेबीज वैक्सीन और दो मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के कॉकटेल जैसे नए समाधान विकसित किए हैं. इतना ही नहीं, संगठन ने रेबीज से जुड़े अपने जागरुकता अभियान विराम (रेबीज पर पूर्ण विराम) का प्रचार करने के लिए टीवी प्रोग्राम का आयोजन किया, जिसमें प्रमुख स्वास्थ्य संगठनों के विशेषज्ञ शिामल थे.
ऐसी स्थिति हैं अलर्ट
सुदर्शन ने कहा कि जब चिकित्सा बिरादरी की बात आती है, तो उन्हें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कुत्ते के काटने वाले सभी पीड़ितों को रेबीज पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस मिले, जो कि घाव को ठीक करने के लिए सही है. उन्होंने कहा कि यदि घाव से खून बह रहा है, तो रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन या मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के साथ टीके का कोर्स आवश्यक है. उन्होंने पीड़ित को तत्काल उपचार दिए जाने पर जोर दिया.