डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन और भारत सरकार के रिश्तों में एक बड़ी अड़चन के रूप में उभरे भारत रूसी तेल आयात ने भारतीय रिफाइनर्स को तीन साल से कुछ अधिक समय में कम-से-कम 12.6 अरब डॉलर की बचत करवाई है। भारत के आधिकारिक व्यापार आंकड़ों के विश्लेषण से यह सामने आया है, जिसमें रूसी तेल की औसत लागत की तुलना अन्य देशों से आयातित कच्चे तेल की कीमत से की गई है। हालांकि ये बचत रिफाइनर्स के लिए अहम हैं, लेकिन यह उतनी अधिक नहीं रहीं जितनी शुरुआत में अनुमानित थीं, क्योंकि समय के साथ रूसी कच्चे तेल पर मिलने वाली छूट काफी घटकर 2024-25 में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। लेकिन इस पूरी तस्वीर में और भी बहुत कुछ छुपा हुआ है।
दरअसल, अगर भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें और भी ऊपर जातीं, जिससे भारत का तेल आयात बिल बहुत अधिक बढ़ जाता क्योंकि देश अपनी ज़रूरतों के लिए तेल आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इस नज़रिए से देखें तो भारत की presumptive (परिकल्पित) बचत कहीं ज़्यादा है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कीमतें कितनी ऊंची जातीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि भारत ने रूसी तेल कितना खरीदा।
शायद यही वजह है कि अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ने रूसी तेल आयात पर पीछे हटने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। यहां घरेलू स्तर पर एक संतुलन भी है जहां एक ओर अमेरिकी ऊंचे टैरिफ का भार भारत के छोटे और मझोले निर्यातकों पर पड़ा है, वहीं दूसरी ओर बड़ी रिफाइनिंग कंपनियों को रूसी कच्चे तेल से कुछ बचत हुई है। ट्रंप के आक्रामक सार्वजनिक रुख ने भारत के लिए तुरंत रूसी तेल आयात कम करना और भी कठिन बना दिया है, भले ही वह ऐसा चाहता हो। भारत साफ कर चुका है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा और यह तय करने का हक वाशिंगटन को नहीं देगा कि उसे किससे व्यापार करना चाहिए खासकर रूस जैसे पुराने और अहम रणनीतिक साझेदार के मामले में।
भारतीय रिफाइनर्स के बड़े पैमाने पर रूसी तेल आयात को ट्रंप प्रशासन एक ऐसे हथियार के रूप में देख रहा है जिससे रूस पर दबाव डालकर यूक्रेन युद्ध खत्म करने की कोशिश की जा सके। तेल निर्यात मास्को के लिए सबसे बड़ा राजस्व स्रोत है और भारत, चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। अगस्त की शुरुआत में, ट्रंप ने भारतीय सामान पर पहले से लगाए गए 25% टैरिफ के ऊपर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगा दिया, यह कहते हुए कि भारत रूस का तेल खरीद रहा है। इस फैसले का असर भारत के अमेरिका को निर्यात पर गंभीर हो सकता है, जिसकी 2024-25 में कुल कीमत लगभग 87 अरब डॉलर थी। ध्यान देने वाली बात यह है कि अमेरिका ने भारत पर तो अतिरिक्त टैरिफ लगाया, लेकिन चीन पर, जो रूस का सबसे बड़ा खरीदार है, ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।
नई दिल्ली ने ट्रंप प्रशासन की इस कार्रवाई को “अनुचित और अव्यवहारिक” बताया है और कहा कि ये आयात तब शुरू हुए जब भारत के परंपरागत आपूर्तिकर्ता यूरोप की ओर चले गए थे। उस समय अमेरिका ने भी भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक ऊर्जा बाज़ार स्थिर रहे। फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद बाइडेन प्रशासन ने भी यही आग्रह किया था।
भारत सरकार का कहना है कि वह वहीं से तेल खरीदेगी जहाँ से सबसे अच्छा सौदा मिलेगा, बशर्ते उस पर प्रतिबंध न हो। रूसी तेल पर कोई औपचारिक प्रतिबंध नहीं है सिर्फ अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा लगाए गए price cap का नियम लागू है, जो तभी लागू होता है जब पश्चिमी शिपिंग और बीमा सेवाओं का इस्तेमाल किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों का कहना है कि उन्हें सरकार से कोई निर्देश नहीं मिला है और वे तब तक रूसी तेल खरीदती रहेंगी जब तक यह आर्थिक और व्यावसायिक रूप से सही है।
रूसी तेल गणित: छूट और बचत
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फरवरी 2022 से पहले, भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी।
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युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल को नकार दिया, तो रूस ने खरीदारों को आकर्षित करने के लिए भारी छूट दी।
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भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और कुछ ही महीनों में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया।
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आज रूस भारत की तेल आपूर्ति का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा देता है।
बचत के आंकड़े :
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2022-23: औसत छूट 13.6%, बचत $4.87 अरब
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2023-24: छूट 10.4%, बचत $5.41 अरब (अधिक वॉल्यूम)
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2024-25: छूट घटकर 2.8%, बचत $1.45 अरब
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2025-26 (अप्रैल-जून): छूट 6.2%, बचत $0.84 अरब
छूट घटने की वजहें:
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अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट
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$60 प्रति बैरल price cap और वास्तविक कीमतों के बीच अंतर का घट जाना
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रूसी तेल पर अधिक फ्रेट और बीमा लागत
परिकल्पित बचत और असर:
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अगर भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो वैश्विक कीमतें और ऊंची हो जातीं।
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उदाहरण: अगर 2022-25 के बीच औसत कीमत $10 अधिक होती, तो भारत का आयात बिल $58 अरब अधिक होता।
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अगर $20 अधिक होती, तो अतिरिक्त बोझ $116 अरब होता।
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CLSA और Nomura जैसे संस्थानों का अनुमान है कि अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, तो कीमतें $90-100 तक जा सकती हैं।
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इससे न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ेगी।
निष्कर्ष साफ है: भारत के लिए रूसी तेल आयात महज़ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक मुद्दा है। भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि वह अपने व्यापारिक साझेदार चुनने के मामले में स्वतंत्र है और इस पर किसी बाहरी शक्ति का दबाव स्वीकार नहीं करेगी।




