मानवता ही वास्तविक धर्म
आपने अपने स्कूल में ‘GOD IS ONE’ का कांसेप्ट जरूर पढ़ा होगा। मोरल साइंस में बच्चों को यह खास तौर पर पढ़ाया जाता है। सालों हमें इससे यह सीखाने की कोशिश की जाती है कि ऊपरवाला एक ही है, हमने बस उसका नाम अलग रख लिया हैं। हालांकि, कुछ लोगों की सोच किनारे कर दें तो आज भी दुनिया में इस बात को लेकर प्रेम और सद्भाव कायम है। ऐसी कई मिशालें मौजूद हैं, जो वाकई में साबित करती हैं कि शिक्षा और मानवता ही वास्तविक धर्म है जिसके बिना सृष्टि का आधार नहीं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एक मुस्लिम देश के करेंसी पर हिंदू देवता का भी फोटो हो सकता है।
हालांकि, भारत के अलावा अरब सहित कई ऐसे देश हैं जहां देवी देवताओं के भव्य मंदिर बने हैं और उनकी पूरी श्रद्धा से पूजा होती है लेकिन क्या कोई मुस्लिम देश अपनी करेंसी पर किसी देवता की मूर्ति छाप सकता है? धर्म निरपेक्ष होने के नाते तो भारत में भी ऐसा नहीं होता तो क्या मुस्लिम देश ऐसा कर सकता है?
87 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम
इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुत राष्ट्र है। यहां 87 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है और 3 फीसदी से भी कम हिंदू, इसके बावजूद भी इंडोनेशिया के 20,000 के नोट पर भगवान गणेश की मूर्ति है। इस रुपियाह (इंडोनेशिया की करेंसी) पर गणेश जी के साथ एक शख्स की भी तस्वीर है, जिसका नाम ‘की हजार देवेंत्रा’ है। यह इंडोनेशिया के स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ 1945 में इंडोनेशिया के शिक्षा मंत्री भी रहे।
आखिर नोट पर गणपति की मूर्ति क्यों?
1997 में एशिया की आर्थिक मंदी से आप जरूर वाकिब होंगे। इस दौरान कई देशों की करेंसी डॉलर के मुकाबले इस कदर नीचे आ गिरी थी जिसके कारण आर्थिक संकट और हाहाकार मच गया था।
इसे संयोग कहिए या कुछ और लेकिन बैंक ऑफ इंडोनेशिया की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार इंडोनेशिया की सरकार ने इस नोट को 1998 में जारी किया था और साल 1999 में जिस गति के साथ इंडोनेशिया मुद्रा रफ्तार पकड़ी और विकास हुआ वह चौकाने वाला था। मात्र एक साल में भी आर्थिक स्थिति में इस कदर सुधार से लोग गदगद हो गए।
नोट पर गणपति विराजमान होते ही बदल गई देश की किस्मत
राष्ट्रीय चिंतकों के द्वारा मुद्रा में सुधार का यह कदम काफी लाजवाब और उन्नतिभरा रहा। इंडोनेशिया में भगवान गणपति को शिक्षा, कला और विज्ञान का देवता माना जाता है। आज भी लोग मानते हैं कि जो कुछ भी हुआ यह गणपति की ही कृपा थी और नोट पर उनके विराजमान होते ही सारी पीड़ा दूर हो गई।
अब यह नोट नहीं है प्रचलन में
यह भी जान लें कि अब यह नोट प्रचलन में नहीं है। 2008 के बाद से इस नोट का उपयोग नहीं किया जाता है।