दुनिया के सबसे अमीर शख्स और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने चांदी (Silver) की आसमान छूती कीमतों पर गहरी चिंता जताई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा, “यह अच्छा नहीं है। कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में चांदी की जरूरत होती है।” मस्क का यह ट्वीट महज एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि आने वाले समय के लिए एक बड़ी चेतावनी है। दरअसल, चांदी अब सिर्फ गहनों या पारंपरिक निवेश का जरिया नहीं रह गई है, बल्कि यह आधुनिक इंडस्ट्री और न्यू-एज टेक्नोलॉजी की रीढ़ बन चुकी है।
अमरीकी ब्याज दरों में कटौती नहीं, बल्कि डिमांड और सप्लाई का गहरा असंतुलन है कीमतों में उछाल की असली वजह
चांदी की कीमतों में आए इस भारी उछाल के पीछे केवल अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद या निवेशकों की खरीदारी ही मुख्य कारण नहीं है। इसका असली कारण बाजार में मांग और आपूर्ति (Supply and Demand) के बीच पैदा हुआ गहरा असंतुलन है। इंडस्ट्री से चांदी की भारी मांग आ रही है, लेकिन इसकी सप्लाई उस रफ्तार से नहीं बढ़ पा रही है, जितनी तेजी से इसकी जरूरत बढ़ रही है। चांदी बिजली की सबसे बेहतरीन सुचालक (Conductivity) मानी जाती है, जिसके कारण इसे किसी दूसरी धातु से रिप्लेस करना बेहद मुश्किल है।
सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और एआई डेटा सेंटर्स की ‘भूख’ ने तोड़े मांग के पुराने सारे रिकॉर्ड
आधुनिक तकनीक में चांदी का इस्तेमाल अब बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है। विशेष रूप से सौर ऊर्जा (Solar Energy), इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) और इलेक्ट्रॉनिक्स व AI डेटा सेंटर्स में इसकी खपत तेजी से बढ़ी है। आंकड़े बताते हैं कि सोलर सेक्टर में जबरदस्त उछाल आया है। साल 2024 में सोलर पैनल बनाने के लिए चांदी की मांग 243.7 मिलियन औंस तक पहुंच गई, जो 2020 के मुकाबले 158% की भारी बढ़ोतरी है। अनुमान है कि 2030 तक सोलर पावर के लिए चांदी की मांग में सालाना 150 मिलियन औंस की और बढ़ोतरी होगी, जो बाजार पर दबाव बढ़ाएगी।
चांदी की अपनी खदानें कम होने से बढ़ा संकट, तांबा और सोने की माइनिंग के दौरान बाय-प्रोडक्ट के रूप में होती है प्राप्ति
चांदी की सप्लाई बढ़ाना माइनिंग कंपनियों के लिए आसान काम नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दुनिया में चांदी की अपनी विशेष खदानें बहुत कम हैं। इसे ज्यादातर तांबा (Copper), लेड, जिंक और सोने की खुदाई (Mining) के दौरान एक बाय-प्रोडक्ट (Byproduct) के रूप में निकाला जाता है। यही कारण है कि मांग बढ़ने पर तुरंत उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं हो पाता। बाजार के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2024 में चांदी बाजार में 501.4 मिलियन औंस की भारी कमी (Deficit) दर्ज की गई, जो 2023 में सिर्फ 19.4 मिलियन औंस थी। यह अंतर बताता है कि संकट कितना गहरा है।
महंगी चांदी से परेशान कंपनियां तलाश रहीं तांबे का विकल्प, लेकिन क्वालिटी और एफिशिएंसी गिरने का सता रहा डर
बढ़ती कीमतों से परेशान होकर अब सोलर मैन्युफैक्चरर्स और अन्य कंपनियां चांदी का इस्तेमाल कम करने या उसकी जगह तांबे (Copper) का उपयोग करने की कोशिश कर रही हैं। इंडस्ट्री में इसे ‘Thrifting’ कहा जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल सोलर मॉड्यूल में चांदी के इस्तेमाल में थोड़ी गिरावट आ सकती है। हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि चांदी को पूरी तरह से हटाना या कम करना आसान नहीं है। ऐसा करने से प्रोडक्ट की क्वालिटी और एफिशिएंसी (Efficiency) पर बुरा असर पड़ सकता है, जो लंबी अवधि में नुकसानदेह साबित होगा।




