Mustard and edible oil price falls. विदेशों में गिरावट के रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शुक्रवार को अधिकांश खाद्यतेल कीमतों में गिरावट का रुख बना रहा। सस्ते आयातित खाद्य तेलों की भरमार के बीच देशी तेल तिलहनों के बाजार में नहीं खपने की वजह से खाद्य तेल कीमतों में चौतरफा गिरावट के बीच सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल तिलहन तथा कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन, बिनौला तेल कीमतों में हानि दर्ज हुई।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज 2.25 प्रतिशत कमजोर बंद हुआ, जबकि शिकागो एक्सचेंज रात चार प्रतिशत टूटने के बाद फिलहाल मंदा चल रहा है।
87 रुपये प्रति लीटर आया भाव.
सूत्रों ने कहा कि देश के बाजारों में पहले से ही आयातित खाद्य तेलों की भरमार है और इस वजह से देशी तेल तिलहन, बाजार में खप नहीं रहे है। आयातित तेल, सोयाबीन डीगम का बंदरगाह पर थोक भाव 91 रुपये लीटर से घटकर 87 रुपये लीटर रह गया और आयातित तेलों के दाम में निरंतर आ रही गिरावट की वजह से देशी तेल तिलहन खप नहीं रहे हैं, जिसकी लागत कहीं अधिक बैठती है। सूत्रों ने आशंका जताई कि देश के खाद्य तेल कारोबार के कुछ अंशधारकों का रवैया सोचनीय है जो आयातित तेलों के दाम की इस भारी गिरावट के बारे में सरकार को आगह करते नहीं दीखते।
उन्हें सरकार को बताना चाहिये कि सस्ते आयातित खाद्य तेलों की भरमार की वजह से घरेलू तिलहन किसानों और तेल उद्योग को बचाने के लिए आयातित खाद्य तेलों पर अधिक से अधिक आयात शुल्क लगाने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि इन अंशधारकों को देश के तेल उद्योग की मुश्किलों के बारे में बोलते नहीं देखा जा रहा है। खाद्य तेल उद्योग को सस्ते आयातित खाद्य तेलों की भरमार की वजह से देशी तिलहन की पेराई करने में भारी नुकसान है। देश में खाद्यतेल आयातक की तो पहले से बुरी स्थिति हैं, अब तेल उद्योग की हालत भी नाजुक है।
अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) अधिक निर्धारित किये जाने की वजह से उपभोक्ता वैश्विक खाद्यतेल कीमतों में आई गिरावट का समुचित लाभ लेने से वंचित रहे। सूत्रों ने कहा कि कम से कम सरकार को हालात का जायजा रखते हुए मौजूदा स्थिति में दखल देकर स्थितियों को संभालना चाहिये। सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि देश के खाद्य तेलों के आयात का खर्च लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये हो गया है। सूत्रों ने कहा कि इस खर्च पर लगाम लगाने का तरीका देशी तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाना ही हो सकता है।
सूत्रों ने कहा कि एमआरपी व्यवस्था को दुरुस्त करने का एक उपाय यह हो सकता है कि सभी कंपनियों को एक नियमित समयांतराल पर सरकारी पोर्टल पर अपने एमआरपी का खुलासा करने को कहा जाये या इसी तरह की कोई और व्यवस्था अपनाई जा सकती है। सूत्रों ने कहा कि तेल कारोबार के कुछ अंशधारकों की चिंता केवल पाम पामोलीन तेल के बीच शुल्क अंतर बढ़ाने की ही नहीं होनी चाहिये बल्कि उन्हें आयातित नरम तेलों (साफ्ट आयल) में आई भारी गिरावट से देशी तेल तिलहन उद्योग, किसान के हितों की संरक्षा के बारे में भी सरकार को अवगत कराना चाहिये। शुक्रवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन – 5,310-5,360 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
- मूंगफली – 6,800-6,860 रुपये प्रति क्विंटल।
- मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 16,650 रुपये प्रति क्विंटल।
- मूंगफली रिफाइंड तेल 2,555-2,820 रुपये प्रति टिन।
- सरसों तेल दादरी- 11,000 रुपये प्रति क्विंटल।
- सरसों पक्की घानी- 1,755-1,785 रुपये प्रति टिन।
- सरसों कच्ची घानी- 1,715-1,840 रुपये प्रति टिन।
- तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
- सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 11,630 रुपये प्रति क्विंटल।
- सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 11,350 रुपये प्रति क्विंटल।
- सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।
- सीपीओ एक्स-कांडला- 8,900 रुपये प्रति क्विंटल।
- बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।
- पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,450 रुपये प्रति क्विंटल।
- पामोलिन एक्स- कांडला- 9,500 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
- सोयाबीन दाना – 5,260-5,390 रुपये प्रति क्विंटल।
- सोयाबीन लूज- 5,000-5,020 रुपये प्रति क्विंटल।
- मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।