देश के आम नागरिकों के लिए यह एक बेहद राहत भरी खबर है। महंगाई के इस दौर में अब इलाज का खर्च कुछ कम होने की उम्मीद जगी है। आने वाले दिनों में जरूरी दवाओं की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। इसका सीधा फायदा उन मरीजों और परिवारों को मिलेगा जो लंबे समय से दवाओं पर हो रहे मोटे खर्च से परेशान थे। बाजार के मौजूदा समीकरण बता रहे हैं कि दवा उद्योग में लागत कम हो रही है, जिसका लाभ अंततः उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा।
दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतों में आई भारी गिरावट, जिसका सीधा असर एमआरपी पर दिखेगा
दवा उद्योग में हो रहे बदलावों पर गौर करें तो दवाओं को बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल, जिसे तकनीकी भाषा में एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स (API) कहा जाता है, उसके दाम काफी गिर गए हैं। चूंकि भारत अपनी दवा निर्माण की जरूरत का लगभग 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आयात करता है, इसलिए वहां कीमतों में आई कमी का असर भारतीय बाजार पर दिखना तय है। चीन के बाजार में एपीआई (API) की कीमतों में 35 से 40 प्रतिशत तक की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है, जो भारतीय दवा कंपनियों के लिए लागत कम करने का बड़ा कारण बनेगी।
कोरोना काल में आसमान छू रहे पैरासिटामोल और एंटीबायोटिक के दाम अब जमीन पर, 900 रुपये वाला माल 250 पर पहुंचा
इस गिरावट को एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। कोविड महामारी के दौरान सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल का कच्चा माल 900 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया था, लेकिन अब यह घटकर लगभग 250 रुपये प्रति किलो के स्तर पर आ गया है। इसी तरह एमोक्सिसिलिन जैसी महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के कच्चे माल भी सस्ते हुए हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि चीन ने कोविड के बाद अपनी उत्पादन क्षमता जरूरत से ज्यादा बढ़ा ली थी। अब आपूर्ति बढ़ने और वैश्विक मांग सामान्य होने के कारण वहां कीमतें तेजी से नीचे आई हैं।
सस्ती दवाएं खरीदने के लिए अभी करना होगा थोड़ा इंतजार, पुरानी इन्वेंट्री खत्म होने के बाद ही लागू होंगी नई दरें
हालाँकि, आम जनता को इसका फायदा तुरंत शायद न मिले। दवा उद्योग के जानकारों ने स्पष्ट किया है कि कंपनियों के पास अभी भी महंगे दाम पर खरीदा गया पुराना स्टॉक (इन्वेंट्री) मौजूद है। कंपनियां पहले अपना पुराना स्टॉक खत्म करेंगी, उसके बाद ही नए और सस्ते कच्चे माल से बनी दवाएं बाजार में आएंगी। वहीं, सरकार भी इस पूरी स्थिति पर गंभीरता से नजर बनाए हुए है। यदि कच्चे माल की कीमतें लंबे समय तक इसी तरह कम रहती हैं, तो नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) आवश्यक दवाओं की कीमतों में आधिकारिक कटौती का फैसला ले सकती है, जिससे आम आदमी का मेडिकल बिल काफी हल्का हो जाएगा।





