भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से बड़ा झटका लगा है। आयोग ने बैंक को एक महिला ग्राहक को 1.7 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह मामला 17 साल पुराना है और बताता है कि कैसे एक साधारण बैंकिंग गलती ने एक महिला की जिंदगी को इतने सालों तक परेशान किया।
क्या था पूरा मामला?
यह कहानी साल 2008 से शुरू होती है, जब एक महिला ने एचडीएफसी बैंक से कार लोन लिया था। उन्होंने अपने SBI बचत खाते से ऑटो-डेबिट की सुविधा दी थी, ताकि हर महीने की EMI अपने आप कट जाए।
समस्या कहां आई?
लेकिन अचानक कुछ अजीब होने लगा:
- महिला की 11 EMI बाउंस हो गईं
- हर बाउंस पर SBI ने 400 रुपये का शुल्क काट लिया
- कुल मिलाकर 4,400 रुपये का अनुचित शुल्क लगा

महिला की दलील
महिला को समझ नहीं आया कि ये EMI बाउंस क्यों हो रही हैं, क्योंकि:
- उनके खाते में हमेशा पर्याप्त बैलेंस था
- पहले कभी ऐसी समस्या नहीं आई थी
- अन्य EMI सही तरीके से कट रही थीं
उन्होंने अपना बैंक स्टेटमेंट प्रिंट करके SBI को सबूत के तौर पर जमा किया।
बैंक ने क्यों नहीं लौटाया पैसा?
SBI ने महिला की शिकायत सुनने के बाद भी बाउंस शुल्क वापस करने से इनकार कर दिया। बैंक का तर्क था:
SBI की दलील:
- ईसीएस (इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस) मैंडेट में दी गई जानकारी सही नहीं थी
- इसी वजह से चेक बाउंस हुए
- शुल्क वैध है
लेकिन महिला ने एक मजबूत सवाल उठाया – अगर ईसीएस मैंडेट गलत था, तो बाकी EMI कैसे सही तरीके से कट गईं?
17 साल की लंबी लड़ाई
महिला ने हार नहीं मानी और न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी:
2010 – पहली शिकायत
- जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई
- लेकिन दावा खारिज कर दिया गया
राष्ट्रीय स्तर पर अपील
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) का रुख किया
- NCDRC ने मामला वापस दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग को भेजा
2025 – आखिरकार मिली जीत
9 अक्टूबर 2025 को दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया।
आयोग ने क्या कहा?
दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने SBI के तर्क को पूरी तरह से खारिज कर दिया:
आयोग के महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
- अगर ईसीएस मैंडेट गलत था, तो दूसरी EMI कैसे वैलिड हुईं?
- SBI का तर्क तर्कसंगत नहीं है
- महिला के खाते में पर्याप्त फंड था
- बैंक ने गलत तरीके से शुल्क वसूला
मुआवजे का फैसला
आयोग ने कहा कि महिला ने:
- 2008 में लोन लिया था
- 2010 में शिकायत दर्ज कराई थी
- 17 साल तक मुकदमेबाजी की पीड़ा झेली
इसीलिए SBI को 1.7 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया।



