अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगा दिया है। ये नए चार्ज 1 अक्टूबर 2025 से लागू हो जायेंगे। यह नियम उन दवाओं पर लागू होंगे जो अमेरिका में उत्पादन नहीं कर रहीं या जिनका प्लांट निर्माणाधीन नहीं है। अमेरिका के इस फैसले से भारत के फार्मास्युटिकल निर्यात पर बड़ा असर पड़ने वाला है।
अमेरिकी बाजार पर भारत की निर्भरता
अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार, 2024 में अमेरिका ने लगभग 233 अरब डॉलर की दवाइयां और औषधीय उत्पाद आयात किए। भारत को ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता है, क्योंकि यह वैश्विक जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति का लगभग 20% और वैक्सीन का 60% हिस्सा प्रदान करता है। इसके अलावा भारत अमेरिका के बाहर सबसे अधिक US FDA-मान्यता प्राप्त उत्पादन संयंत्रों का घर है।
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2024-25 में भारत ने कुल 30 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की दवाइयां विश्वभर में निर्यात कीं।
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इसी अवधि में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा, जहां भारत ने लगभग 31% (लगभग 3.6 अरब डॉलर 2024 में और 2025 की पहली छमाही में 3.7 अरब डॉलर) मूल्य की दवाइयां भेजी।
टैरिफ से बढ़ेगा भारत पर दबाव
टैरिफ फिलहाल केवल पेटेंटेड दवाओं पर लागू होगा, लेकिन विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि जटिल जेनेरिक और स्पेशियलिटी दवाओं को भी भविष्य में शामिल किया जा सकता है। भारतीय कंपनियां जैसे डॉ. रेड्डी, सन फार्मा, लुपिन और ऑरोबिंदो कम कीमत वाली जेनेरिक दवाओं के जरिये अमेरिकी बाजार में अग्रणी हैं। ये दवायें अमेरिका में नौ में से दस प्रिस्क्रिप्शन को पूरा करती हैं, लेकिन देश के स्वास्थ्य बजट का सिर्फ 1.2% हिस्सा लेती हैं।
संभावित प्रभाव
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कीमतें बढ़ेंगी: अमेरिकी मरीजों और मेडिकेयर/मेडिकेड जैसे सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर लागत का बोझ बढ़ सकता है।
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आपूर्ति बाधित: भारतीय कंपनियों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि ऊँचे टैरिफ से दवा आपूर्ति में रुकावट और अमेरिका में दवाओं की कमी हो सकती है।
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चीन पर निर्भरता: उद्योग प्रतिनिधियों का कहना है कि टैरिफ लागू होने पर अमेरिका को जीवनरक्षक दवाओं के लिए चीन पर अधिक निर्भर होना पड़ सकता है, जिससे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
भारत के लिए संभावित अवसर
कुछ उद्योग नेता इसे आत्मनिर्भरता का मौका मानते हैं। डादाचांजी समूह के ऋषद डादाचांजी ने कहा कि यह संकट भारतीय कंपनियों को नए बाजार खोजने, R&D में निवेश बढ़ाने और साझेदारियाँ विकसित करने के लिए प्रेरित करेगा।
निष्कर्ष
अगर अमेरिका अपने टैरिफ फैसले पर कायम रहता है तो भारतीय फार्मा उद्योग को अल्पकालिक झटका लग सकता है, लेकिन दीर्घकाल में यह कदम भारत को बाजार विविधीकरण और नवाचार की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर सकता है।