यूरोपीय संघ (EU) ने रूस पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता है। आर्थिक मामलों से जुड़ी संस्था ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के मुताबिक, इस फैसले से भारत के 15 अरब डॉलर (लगभग ₹1,29,281 करोड़) के पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात पर खतरा मंडरा रहा है।
अगर भारत यूरोपीय देशों को ऐसा तेल बेचता है जो रूसी कच्चे तेल से बना है, तो अब EU ऐसा तेल नहीं खरीदेगा – चाहे वह भारत जैसे किसी और देश से ही क्यों न हो। यह नियम EU की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वे रूस पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका असर भारत, UAE और तुर्की जैसे देशों पर भी पड़ सकता है, जो रूस से तेल खरीदकर दूसरे देशों को बेचते हैं।
क्या है नया EU नियम?
EU की ओर से अब यह साफ कर दिया है कि अगर किसी देश का तेल रूस के कच्चे तेल से बना है, तो वे वह तेल अब नहीं खरीदेंगे – चाहे वह भारत, UAE या तुर्की जैसे किसी तीसरे देश से क्यों न आ रहा हो।
इस फैसले से किन देशों पर पड़ेगा असर?
GTRI का कहना है कि इस कदम का भारत, UAE और तुर्की जैसे देशों पर बुरा असर पड़ेगा। ये देश सस्ते दाम पर रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइन करके डीज़ल, पेट्रोल और एयरलाइन फ्यूल (ATF) बना रहे थे, और फिर उसे यूरोप को बेच रहे थे। अब EU के नए नियमों के चलते यह बिज़नेस मॉडल खतरे में पड़ गया है।
कुछ जरूरी आंकड़े
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वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने EU को 19.2 अरब डॉलर का पेट्रोलियम एक्सपोर्ट किया था।
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2024-25 में यह घटकर 15 अरब डॉलर रह गया (27.1% की गिरावट)।
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इसी दौरान भारत ने रूस से 50.3 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा, जो भारत की कुल तेल खरीद (143.1 अरब डॉलर) का एक-तिहाई हिस्सा है।
क्या भारत और रूस के बीच व्यापार अवैध है?
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने बताया कि, भारत का रूस से व्यापार पूरी तरह कानूनी और वैध है। भारत को अब अपने आर्थिक हितों और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच संतुलन बनाना होगा, क्योंकि रूस भारत का एक प्रमुख ऊर्जा साझेदार है।
EU ने क्यों लिया ये फैसला?
EU का मुख्य मकसद है रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना ताकि वह रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए फंड न जुटा सके। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और अपनी जरूरत का 85% तेल आयात करता है, अब इस स्थिति में एक बार फिर मुश्किल चुनौतियों का सामना कर सकता है।




