तलाल के भाई अब्दुल फत्ताह महदी ने फिर से यमन के अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर कहा है कि निमिषा प्रिया की फांसी में देरी न की जाए और उसे तुरंत अंजाम दिया जाए। उन्होंने किसी भी माफ़ी या समझौते से साफ़ इनकार किया है। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा पर 16 जुलाई को अमल होना था, लेकिन इसे अस्थायी रूप से टाल दिया गया, जिससे उनका परिवार दुखी और असंतुष्ट है। महदी का कहना है कि “तलाल का खून कोई सौदेबाज़ी का सामान नहीं है”। कुछ भारतीय धार्मिक नेताओं और मीडिया रिपोर्ट्स में सुलह की बात कही जा रही थी, लेकिन परिवार ने उसे झूठा बताया है।
भारत सरकार (MEA) ने साफ़ किया कि फांसी को सिर्फ टाला गया है, रद्द नहीं किया गया। बातचीत और कूटनीतिक प्रयास जारी हैं। हालांकि भारत सरकार ने इस मामले को बेहद संवेदनशील और जटिल बताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा है कि निमिषा की सजा को स्थगित जरूर किया गया है, लेकिन रद्द नहीं किया गया है। भारत सरकार कूटनीतिक और मानवतावादी स्तर पर बातचीत कर रही है, जिसमें कुछ मित्र देश भी शामिल हैं, क्योंकि यमन में भारत की कोई आधिकारिक दूतावास उपस्थिति नहीं है।
इस बीच, निमिषा की 13 वर्षीय बेटी मिशेल जो हाल ही में अपने पिता और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ यमन पहुंची थी, ने एक भावुक वीडियो संदेश में अपील करते हुए कहा, “मैं अपनी मां को बहुत याद करती हूं, कृपया मेरी मदद कीजिए।” इस संदेश ने भारत में आम जनता और मानवाधिकार संगठनों के बीच गहरी सहानुभूति जगाई है।
निमिषा प्रिया का मामला अब भारत और यमन के बीच संवेदनशील कूटनीतिक रिश्तों का विषय बन गया है। भारतीय अधिकारियों का लक्ष्य है कि किसी तरह दया या मानवीय आधार पर उनकी सजा को रोका जा सके। लेकिन जब तक तलाल का परिवार “दिया” (रक्तपात के बदले मुआवजा) को स्वीकार नहीं करता, तब तक कानूनी तौर पर उनके बचने की संभावना बहुत कम है।
यह मामला केवल एक आपराधिक सजा का नहीं, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा, मानवाधिकार, और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जुड़ा हुआ है, जहां एक गलत कदम किसी की जान ले सकता है और एक सही संवाद शायद जीवन बचा सकता है।




