नई दिल्ली: आर्थिक अनुमान बने हुए हैं कि अगले वित्तीय वर्ष में जीडीपी 6.2% और उपभोक्ता मुद्रास्फीति 2.7% रहेगी। सरकार GST की बड़ी व्यवस्था बदलने पर विचार कर रही है। यह बदलाव वर्षों से लंबित रहा है और अब फिर से योजना के स्तर पर चर्चा में आया है।
वर्तमान में GST चार दरों पर है — 5%, 12%, 18% और 28%। प्रस्ताव यह है कि 12% और 18% को हटाकर केवल 5% और 28% को मुख्य रखा जाए और ग़लत या लक्ज़री चीज़ों के लिए 40% का नया स्लैब लाया जाए। राज्यों की आमदनी पर असर के कारण वो विरोध कर सकते हैं, इसलिए उच्च राजस्व वाले सामान और सेवाओं को ऊँचे स्लैब में ही रखने की संभावना बताई जा रही है।
इस बदलाव का असर आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर कुछ इस तरह दिख सकता है: स्लैब घटाने से सैद्धान्तिक रूप से GDP में 0.19% तक कमी आ सकती है; महँगाई में सामान्य तौर पर गिरावट देखने को मिल सकती है क्योंकि कई चीज़ों के टैक्स कम होंगे। हालांकि 12% स्लैब में आने वाली वस्तुओं का लगभग 22% हिस्सा उपभोक्ता-कार्ट में है और 28% में करीब 5% है। पिछली बार ऐसा बदलाव होने पर कंपनियों ने दाम कम न करके अपने मार्जिन बढ़ा लिए थे, इसलिए दाम तुरंत नहीं घट सकते।
आगे की प्रक्रिया राजनीतिक होगी: एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स इस हफ्ते चर्चा करेगा और GST काउन्सिल सितंबर में बैठक करेगी। अगर सहमति बनी तो नई संरचना दिवाली तक लागू हो सकती है। वित्तीय हिसाब से, सरकार की सबसे बड़ी अप्रत्यक्ष आय उन वस्तुओं से आती है जिन पर 18% से कम टैक्स है, इसलिए भारी प्रभाव का अनुमान कम है। वर्तमान में फिस्कल घाटे का अनुमान GDP का 4.4% ही रखा गया है, जबकि मौजूदा कम्पेन्सेशन सेस की जगह नया लेवी लाने की संभावनाएँ भी देखी जा रही हैं।
- FY26 के लिए जीडीपी 6.2% और महँगाई 2.7% का अनुमान बना हुआ है।
- GST के चार स्लैब को दो (5% व 28%) और 40% नया स्लैब करने का प्रस्ताव है।
- 12% और 18% हटने से आर्थिक प्रभाव और राज्यों की आमदनी पर सवाल उठे हैं।
- कंज्यूमर पर असर: शुरुआत में खरीद में धीमी; त्योहारी सीजन में मांग बढ़ सकती है।
- प्रक्रिया: GoM इस हफ्ते, GST काउन्सिल सितंबर में; लागू होने पर दिवाली तक हो सकता है।




