जहां एक ओर नेपाल में जनता के गुस्से ने वहां की मौजूदा सत्ता को ही उखाड़ फेंका वहीं दूसरी ओर फ्रांस में भी बुधवार को बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को अवरुद्ध किया, आगजनी की और पुलिस की ओर से छोड़ी गई आंसू गैस का सामना किया।
200 प्रदर्शनकारी गिरफ्तार
इन प्रदर्शनों का उद्देश्य राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर दबाव बनाना और उनके नए प्रधानमंत्री को शुरुआती चुनौती देना है। फ्रांस के गृह मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विरोध प्रदर्शनों के पहले कुछ घंटों में लगभग 200 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य “सब कुछ रोक देने” का था, लेकिन यह आंदोलन, जो ऑनलाइन शुरू हुआ था और गर्मियों के दौरान जोर पकड़ गया, पूरे देश में जगह-जगह अशांति का कारण बना।
ट्रेन सेवाएं हुईं बाधित
80,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती के बावजूद, कई जगहों पर बैरिकेड लगाए गए और पुलिस को उन्हें तोड़ने के लिए कार्रवाई करनी पड़ी। पश्चिमी शहर रेन (Rennes) में प्रदर्शनकारियों ने एक बस में आग लगा दी, वहीं दक्षिण-पश्चिम में एक पावर लाइन को नुकसान पहुंचाने से ट्रेन सेवाएँ बाधित हो गईं। गृह मंत्री ब्रूनो रिटैलो ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारी “विद्रोह का माहौल” बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सेबास्टियन लेकोर्नू को फ्रांस का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया
इसी बीच राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने रक्षा मंत्री सेबास्टियन लेकोर्नू को फ्रांस का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया और उन्हें तुरंत देश की राजनीतिक पार्टियों को एकजुट कर बजट पर सहमति बनाने का जिम्मा सौंपा। 39 वर्षीय लेकोर्नू फ्रांस के इतिहास में सबसे युवा रक्षा मंत्री रहे हैं और उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच 2030 तक की सैन्य सुदृढ़ीकरण योजना तैयार की थी। लंबे समय से मैक्रों के करीबी रहे लेकोर्नू, पिछले एक साल में फ्रांस के चौथे प्रधानमंत्री बने हैं। पूर्व में वे कंज़र्वेटिव राजनीति से जुड़े थे, लेकिन 2017 में मैक्रों की सेंट्रिस्ट पार्टी से जुड़ गए। उन्होंने स्थानीय सरकारों, ओवरसीज़ टेरिटरीज़ में काम किया है और “येलो वेस्ट” आंदोलन के दौरान संवाद के जरिए गुस्से को शांत करने की कोशिश की थी। 2021 में ग्वाडेलूप में अशांति के समय भी उन्होंने स्वायत्तता पर बातचीत की पेशकश की थी।
इससे पहले सोमवार को सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पास करके पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू और उनकी सरकार को हटा दिया था, जिससे यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने एक नया राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है।




