शिक्षा को न करें सीमित
शिक्षा और भाषा कभी भी धर्म या क्षेत्र के आधार पर सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसकी खूबसूरती सभी को अपने जीवन में उतारना ही चाहिए। लेकिन हकीकत यही है कि लोगों के तुलनात्मक रवैया की वजह से शिक्षा और भाषा अपना महत्व खोते रहे हैं। इसकी खूबसूरती समझने की बजाय इस आधार पर हमेशा एक दूसरे को दबाने की कोशिश की जाती है। हालांकि, इससे संबंधित समाज में फैली कटुता को आपने भी कभी न कभी महसूस जरूर किया होगा लेकिन शिक्षा और भाषा का महत्व समझने वाले आज भी मौजूद है तभी इसका अस्तित्व है। इसी कथन को जान देती है राजस्थान की अंजुम आरा की कहानी।
अंजुम ने पेश की मिशाल
उन्होंने छोटी सोच वालों के खिलाफ एक मिशाल पेश की है और समाज को नया संदेश दिया है। ऐसा नहीं है कि संस्कृत केवल हिंदुओं के पढ़ने का विषय है या फिर उर्दू केवल मुस्लिमों को ही पढ़ना चाहिए या अंग्रेजी केवल ईसाई को, यह मात्र एक भाषा है जिसे कोई भी पढ़ सकता है। इसका किसी विशेष वर्ग का अधिकार नहीं। यही बात अंजुम ने आरपीएससी परीक्षा देकर संस्कृत विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर की सूची में 21वां स्थान हासिल कर साबित किया है।
तीनों बहनें संस्कृत की छात्रा
बताते चलें कि परिवार की तीनों बहनें संस्कृत की छात्रा हैं। दोनों संस्कृत में आचार्य (पीजी) हैं. छोटी बहिन रुखसार बानो तृतीय श्रेणी शिक्षक है। बड़ी बहन भी आचार्य हैं। वह पिता और गुरूजनों को अपना आदर्श मानती हैं। पूरी वाल्मीकि रामायण और कुरान भी पढ़ी है। वो बताती हैं कि किसी भी धार्मिक किताब का एक ही उद्देश्य होता है, समाज को जोड़ना। वास्तव में शिक्षा ही वह हथियार से जिससे आप अपने भविष्य सुनहरा और सुरक्षित कर सकते हैं। समाज में अपनी खूबसूरती बिखेर सकते हैं, दूसरों के लिए आदर्श बन सकते हैं और दूसरों का जीवन भी उज्जवल कर सकते हैं।