आजकल ऑटोमैटिक कारों की डिमांड भारत में तेजी से बढ़ रही है। खासकर शहरों की भीड़भाड़ में बिना गियर बदले चलाने की सहूलियत लोगों को खूब भा रही है। लेकिन दिक्कत ये है कि इनका दाम मैनुअल गाड़ियों से काफी ज्यादा रखा जा रहा है, जिससे कई खरीदार चाहकर भी ऑटोमैटिक कार नहीं खरीद पा रहे।
क्यों ज्यादा महंगी हैं ऑटोमैटिक कारें?
अगर कोई ग्राहक सिर्फ गियर बदलने की टेंशन से बचना चाहता है, तो उसे एक साधारण ऑटोमैटिक कार खरीदने का ऑप्शन होना चाहिए। लेकिन कंपनियां ऐसा नहीं कर रहीं। ऑटोमैटिक गाड़ियां सीधे प्रीमियम मॉडल में आती हैं, जिनमें ये महंगे फीचर्स मिलते हैं: सनरूफ
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अब दिक्कत ये है कि अगर आपको सिर्फ ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन चाहिए, तो भी आपको ये महंगे फीचर्स जबरदस्ती लेने पड़ते हैं। इसी वजह से लोग मैनुअल वेरिएंट ही खरीदने पर मजबूर हो रहे हैं।
कितना बड़ा है दाम का अंतर?
2024 में ऑटोमैटिक कारों की औसत कीमत ₹16.33 लाख थी, जबकि मैनुअल वेरिएंट की ₹10.22 लाख। यानी लगभग ₹6 लाख का फर्क।
कार इंडस्ट्री के एक्सपर्ट रवि भाटिया का कहना है कि लोग सिर्फ गियर बदलने की झंझट से बचना चाहते हैं, लेकिन कंपनियां उन्हें महंगे सेगमेंट में धकेल रही हैं।
शहरों में बढ़ रही है डिमांड
ऑटो कंपनियों का कहना है कि मेट्रो शहरों में ऑटोमैटिक गाड़ियों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। Honda, MG Motor जैसी कंपनियां कहती हैं कि लोग अब ज्यादा आरामदायक ड्राइविंग चाहते हैं, इसलिए वे ऑटोमैटिक मॉडल को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं।
क्या मैनुअल का दबदबा खत्म होगा?
भले ही ऑटोमैटिक गाड़ियों की मांग बढ़ रही है, लेकिन जब तक कंपनियां बिना ज्यादा फीचर्स वाले किफायती ऑटोमैटिक मॉडल नहीं लाएंगी, तब तक मैनुअल कारों का क्रेज बना रहेगा।
कुल मिलाकर ऑटोमैटिक गाड़ियां खरीदने की चाहत तो लोगों में है, लेकिन कीमत देखकर वो दोबारा मैनुअल की तरफ मुड़ जाते हैं। अब देखना ये है कि कंपनियां इस दिक्कत का हल कब निकालती हैं.