दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट जारी रही। सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों के भाव हानि दर्शाते बंद हुए। बाकी अन्य तेल-तिलहनों के दाम पूर्ववत रहे। लेकिन इसका फायदा आम-आदमी को नहीं मिल रहा है। होलसेल के मुकाबले रिटले की कीमतें लगभग दोगुना है।
क्या है खाद्य तेल का रेट? (Edible Oil Price)
सूत्रों ने कहा कि बंदरगाह पर आयातित खाद्य तेलों (सूरजमुखी, सोयाबीन और पामोलीन तेल) का थोक दाम लगभग बराबर ही है लेकिन खुदरा में ये तेल अलग-अलग दाम पर कैसे बिक रहे हैं? इस सूरजमुखी तेल का थोक दाम 80 रुपये लीटर है पर खुदरा में यह लगभग 150 रुपये लीटर बिक रहा है, इसी तरह सोयाबीन तेल का थोक दाम पोर्ट पर 85 रुपये लीटर बैठता है लेकिन खुदरा में यह 140 रुपये लीटर बिक रहा है। कम आय वर्ग के कंज्यूमर्स में खपत होने वाले पामोलीन तेल का पोर्ट का थोक दाम पड़ता है लगभग 85 रुपये लीटर लेकिन खुदरा में यह तेल 105 रुपये लीटर बिक रहा है। प्रीमियम क्वॉलिटी वाले चावल भूसी (राइस ब्रान) तेल का थोक बिक्री भाव 85 रुपये लीटर और खुदरा में यह अभी 170 रुपये लीटर बिक रहा है जो पहले के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में 20 रुपये लीटर की कमी करने के बाद का भाव है।
सरकार को ये काम करने की जरूरत?
सूत्रों ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कीमतों पर निगाह रखे और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करे, क्योंकि मौजूदा समय में सरसों खपेगा नहीं तो किसान कहां जायेगा? देशी तेल-तिलहनों के खपने की स्थिति बनाने के लिए स्थिति निर्माण करना होगा नहीं तो किसान हतोत्साहित होंगे। सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेल कीमतों के बढ़ने से महंगाई की बात कुछ निहित स्वार्थ की इंटरनेशन कंपनियों, पैकरों द्वारा खड़ी की जाती है, ताकि देशी तेल-तिलहनों को चोट पहुंचाकर देश को पूरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर कर दिया जाए। तेल की जो प्रति व्यक्ति खपत है वह दूध के मुकाबले बहुत कम है।
सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेलों के दाम बढ़ने पर तेल उद्योग पर छापे डाले जाते हैं या उन्हें अपने स्टॉक का खुलासा पोर्टल पर करने को कहा जाता है। तो ऐसे में सरकार को इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों और पैकरों को अपने एमआरपी का खुलासा किसी पोर्टल पर करने को विवश करना चाहिये तभी उपभोक्ताओं को इनकी ‘लूट’ से बचाया जा सकेगा। सरकार ने जब खाद्य तेल कंपनियों को एमआरपी घटाने के लिए बोला तो इन्हीं लोगों ने पिछले कुछ महीनों से इन शुल्कमुक्त आयातित खाद्य तेल को लगभग दोगुने दाम पर बेचने के बाद कीमत में बहुत मामूली कमी कर खुद को पाक साफ बना लिया।
कीमतों को कंट्रोल करने के लिए क्या है उपाय?
सूत्रों ने कहा कि इन कुछ इंटरनेशनल कंपनियों की साजिशों की वजह से पिछले लगभग 25 वर्षों में हम निरंतर इमपोर्ट पर निर्भर होते जा रहे हैं। अगर महंगाई दर की ही चिंता है तो खाद्य तेल आयात कर उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए बेचा जाना कहीं बेहतर विकल्प हो सकता है जिससे खाद्य तेल, उपभोक्ताओं को सस्ता भी मिल सकेगा। जबकि मौजूदा कोटा व्यवस्था के तहत जो खाद्य तेल आया है उसे थोक और खुदरा दोनों में प्रीमियम के साथ बेचे जाने के कारण उपभोक्ताओं की जेब ढीली होती रही।
किसान भी तिलहन की खेती से कर रहे हैं तौबा!
सूत्रों ने कहा कि इन्हीं वजहों से पिछले वर्षों में कई देशी तिलहन की खेती लगभग ठप हो चली है और देश निरंतर आयात पर निर्भर होता जा रहा है। इसके कुछ उदाहरण हैं- सूरजमुखी (दक्षिणी राज्य, हरियाणा, पंजाब) तोरिया (पंजाब, हरियाणा), लईया (उ.प्र.) महुआ (म.प्र., उ.प्र., राजस्थान), तरबूज बीज का तेल (गुजरात), मूंगफली (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु) जिनकी खेती बेहद मामूली रह गई है या लगभग समाप्ति की ओर है। सूत्रों ने कहा कि बाकी चीजों का प्रबंध कर लिया जा सकता है पर किसान दोबारा लौट नहीं पायेगा। जिस तरह इस बार सरसों का हाल है वह देश में तेल-तिलहन की आत्मनिर्भरता के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है।