गोल्ड ने पिछले तीन सालों में जबरदस्त रिटर्न दिया है। इसने 17% सालाना की दर से रिटर्न दिया, जबकि इसी दौरान सेंसेक्स ने 11.5% का रिटर्न दिया। यह देख कर निवेशकों के मन में सवाल उठ रहा है – क्या गोल्ड सिर्फ़ एक सेफ-हेवन (सुरक्षित निवेश) एसेट है, या यह लंबी अवधि में वेल्थ (संपत्ति) बनाने का ज़रिया भी है?
गोल्ड बनाम शेयर बाजार – अभी किसका पलड़ा भारी?
फ़िलहाल, गोल्ड का प्रदर्शन शेयर बाजार से बेहतर लग रहा है। लेकिन यह तब हो रहा है जब गोल्ड नई ऊँचाइयों पर है और शेयर बाजार ठंडा पड़ा है।
क्या आगे भी गोल्ड की रैली जारी रहेगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि गोल्ड की तेज़ी जल्द ही रुक सकती है क्योंकि: अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक बातचीत (Diplomatic Talks) चल रही है, जिससे वैश्विक माहौल स्थिर हो सकता है।
महंगाई (Inflation) कंट्रोल में है, जिससे गोल्ड की हेजिंग वैल्यू घट सकती है।
डॉलर मज़बूत है, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Fed) की ओर से ब्याज दरों में बड़ी कटौती की संभावना कम है।
गोल्ड ओवरबॉट (महंगा) तो नहीं हो गया?
गोल्ड की कीमतें उसकी 200-दिन की मूविंग एवरेज से काफी ऊपर हैं, जो आमतौर पर करेक्शन (गिरावट) का संकेत देती है।
सेंसेक्स-टू-गोल्ड रेशियो (Sensex-to-Gold Ratio) के अनुसार, अगर यह रेशियो 1 से नीचे हो, तो अगले 3 सालों में शेयर बाजार गोल्ड से बेहतर प्रदर्शन करता है।
अभी यह रेशियो लॉन्ग टर्म एवरेज (0.96) से नीचे है, यानी संकेत मिल रहे हैं कि शेयर बाजार आने वाले समय में गोल्ड को पीछे छोड़ सकता है।
इतिहास से सबक – क्या गोल्ड हमेशा ऊपर जाता है?
गोल्ड भी शेयर बाजार की तरह साइक्लिकल (चक्र में चलने वाला) एसेट है। जब-जब इसमें बड़ी तेजी आई है, उसके बाद लंबे समय तक कमजोर प्रदर्शन भी हुआ है। 1980 के बाद गोल्ड को अपनी पुरानी ऊँचाई छूने में 10 साल लग गए।
2012 के बाद, इसे रिकवरी में 7 साल लग गए।
1980 से अब तक गोल्ड तीन बार 30% से ज्यादा गिर चुका है।
मतलब यह कि गोल्ड हमेशा चढ़ता ही नहीं रहता, इसमें गिरावट के दौर भी आते हैं।
अब निवेशकों को क्या करना चाहिए?
गोल्ड लॉन्ग टर्म में अच्छा निवेश बना रह सकता है, लेकिन सिर्फ़ हाल के मुनाफ़े को देखकर इसमें जरूरत से ज्यादा पैसा लगाना समझदारी नहीं होगी।
विशेषज्ञों की राय: पोर्टफोलियो में गोल्ड की हिस्सेदारी 15-20% होनी चाहिए – न ज़्यादा, न कम।
अगर गोल्ड में ज्यादा निवेश कर रखा है, तो थोड़ा मुनाफ़ा बुक कर लेना समझदारी होगी।
शेयर बाजार लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न दे सकता है, इसलिए डाइवर्सिफिकेशन (विभाजन) ज़रूरी है।