अब गाजा से जल्दी युद्ध समाप्ति की संभावना बहुत ही कम होती नजर आ रही है। इज़रायल ने क़तर की राजधानी दोहा में हमला किया, जहां हमास की टीम अमेरिका की नई युद्धविराम योजना पर बातचीत कर रही थी। इस हमले में छह लोगों की मौत हुई, लेकिन हमास का शीर्ष नेतृत्व बच गया। इससे साफ है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू बातचीत से ज़्यादा हमास को पूरी तरह खत्म करने पर ज़ोर दे रहे हैं। इज़रायल में बंधकों के परिवारों ने चिंता जताई है कि इसका असर बंधकों पर बुरा पड़ सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी नाराज़गी जताई और कहा कि नेतन्याहू ने यह हमला अकेले ही किया। क़तर एक छोटा लेकिन बहुत अमीर देश है और अमेरिका का बड़ा सहयोगी है, यहां अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना भी है। क़तर ने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है। लेकिन नेतन्याहू ने इसे हमास नेताओं पर सीधा जवाबी हमला कहा, क्योंकि हाल ही में यरूशलेम में गोलीबारी में छह इज़रायली मारे गए थे और गाज़ा में सेना के शिविर पर हमले में चार सैनिक मारे गए थे। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक बिना मंज़ूरी किसी दूसरे देश पर हमला करना आक्रामकता और संप्रभुता का उल्लंघन माना जाता है। इज़रायल पिछले दो सालों से कई देशों – ईरान, लेबनान, सीरिया, यमन और इराक पर ऐसे हमले करता रहा है।
यह हमला ऐसे समय हुआ है जब तीन बड़ी घटनाएं साथ-साथ हो रही हैं – पहला, गाज़ा में इज़रायली सेना का बड़ा ऑपरेशन, जहां लोग भुखमरी झेल रहे हैं। दूसरा, इज़रायल के भीतर बढ़ते विरोध-प्रदर्शन, जो युद्ध खत्म करने और बंधकों की रिहाई की मांग कर रहे हैं। तीसरा, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक, जहां कई पश्चिमी देश फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले हैं। इन सबके बीच क़तर पर हमला दिखाता है कि नेतन्याहू की सरकार न अंतरराष्ट्रीय राय की परवाह कर रही है और न ही अपने देश के अंदर हो रहे विरोध की। उनका मुख्य मकसद लगता है युद्ध को जारी रखना और इसे नए मोर्चों तक फैलाना।




