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भारत में बैंकों का फंसा कर्ज दशकों के निचले स्तर पर, एनपीए घटकर 2.1% हुआ।

GulfHindi Desk by GulfHindi Desk
दिसम्बर 29, 2025
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भारत के बैंकिंग सेक्टर को लेकर जारी ताजा आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था के लिए राहत भरी तस्वीर पेश की है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की नई रिपोर्ट बताती है कि भारतीय बैंक अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं। बैंकिंग सिस्टम की बैलेंस शीट में लगातार सुधार देखने को मिल रहा है और सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि फंसा हुआ कर्ज यानी ‘बैड लोन’ दशकों के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। इस सुधार का सीधा मतलब है कि आम लोग और कॉरपोरेट कंपनियां समय पर अपना कर्ज चुका रही हैं, जिससे बैंकों के ऊपर से वित्तीय दबाव काफी कम हुआ है।

सितंबर 2025 तक ग्रॉस एनपीए घटकर 2.1 प्रतिशत रह गया, बैंकिंग सिस्टम में ऐतिहासिक सुधार के स्पष्ट संकेत

बैड लोन यानी एनपीए (Non-Performing Assets) के मोर्चे पर बैंकों ने शानदार प्रदर्शन किया है। RBI की ‘ट्रेंड एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग’ रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर 2025 तक बैंकों का ग्रॉस एनपीए रेश्यो घटकर महज 2.1 प्रतिशत रह गया है। इससे पहले मार्च 2025 में यह आंकड़ा 2.2 प्रतिशत था। आसान भाषा में समझें तो अब बैंकों द्वारा बांटे गए हर 100 रुपये के कर्ज में से केवल लगभग 2 रुपये ही फंसने या डूबने के जोखिम में हैं। यह गिरावट भारतीय बैंकिंग इतिहास में पिछले कई दशकों का सबसे बेहतर प्रदर्शन है, जो सिस्टम की मजबूती को दर्शाता है।


होम और एजुकेशन लोन की रिकवरी शानदार, लेकिन टीवी-फ्रिज जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स पर अब भी चिंता बरकरार

रिपोर्ट में अलग-अलग तरह के लोन की एसेट क्वालिटी का भी विश्लेषण किया गया है। इसमें हाउसिंग लोन, एजुकेशन लोन और क्रेडिट कार्ड जैसे रिटेल लोन सेगमेंट में काफी सुधार देखा गया है, यानी इन क्षेत्रों में लोग ईमानदारी से किस्तें चुका रहे हैं। हालांकि, कुछ विशेष क्षेत्रों में अब भी तनाव बना हुआ है। उदाहरण के लिए, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स (जैसे टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान) की खरीदारी के लिए लिए गए लोन में बैड लोन का अनुपात अभी भी ज्यादा है। वहीं, औद्योगिक सेक्टर की बात करें तो लेदर और लेदर प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियों के कर्ज में सबसे ज्यादा डिफॉल्ट या देरी की समस्या देखी गई है।

पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड पर सख्ती का दिखा असर, छोटे कर्ज बांटने में बैंकों ने बरती अब तक की सबसे ज्यादा सावधानी

पिछले दो वर्षों में अनसिक्योर्ड लोन (बिना गारंटी वाले कर्ज) को लेकर बैंकों और RBI ने काफी सतर्कता बरती है। छोटे पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड के जरिए खर्च बहुत तेजी से बढ़ रहे थे, जिसे देखते हुए RBI ने साल 2023 के अंत में नियमों को सख्त कर दिया था। रिपोर्ट बताती है कि इस सख्ती का सकारात्मक असर हुआ है और जोखिम भरे कर्ज की रफ्तार पर लगाम लगी है। अब चूंकि हालात नियंत्रण में हैं और एसेट क्वालिटी सुधर रही है, इसलिए केंद्रीय बैंक ने बाद में कुछ नियमों में आंशिक ढील भी दी है, जिससे बाजार में संतुलन बना रहे।

डिपॉजिट और लोन में बढ़ोतरी जारी, मजबूत पूंजी आधार के साथ रेगुलेटरी जरूरतों से कहीं बेहतर स्थिति में हैं बैंक

वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान बैंकों के कारोबार में भी वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों के डिपॉजिट (जमा पूंजी) और लोन (ऋण वितरण) दोनों में बढ़ोतरी हुई है, हालांकि यह रफ्तार पिछले साल के मुकाबले थोड़ी धीमी रही। इसके अलावा, इंटरेस्ट मार्जिन कम होने के कारण बैंकों के मुनाफे की ग्रोथ रेट में भी थोड़ी कमी आई है। इसके बावजूद, संतोषजनक बात यह है कि सभी बैंक मजबूत पूंजी आधार (Capital Base) पर खड़े हैं और उनकी लिक्विडिटी (नकद उपलब्धता) की स्थिति रेगुलेटरी जरूरतों से कहीं ज्यादा बेहतर है, जो किसी भी आर्थिक झटके को सहने की क्षमता रखती है।

क्लाइमेट चेंज भविष्य में बन सकता है बड़ा वित्तीय खतरा, आरबीआई तैयार कर रहा है जोखिम पहचानने के लिए नई सूचना प्रणाली

ताजा रिपोर्ट में भविष्य की चुनौतियों को लेकर भी आगाह किया गया है। RBI ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आने वाले समय में वित्तीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। मौसम में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं का सीधा असर आर्थिक गतिविधियों और लोन रिकवरी पर पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बैंक एक नई और उन्नत सूचना प्रणाली विकसित कर रहा है, ताकि जलवायु से जुड़े वित्तीय जोखिमों की सही समय पर पहचान की जा सके। RBI ने स्पष्ट किया है कि क्लाइमेट फाइनेंस सिर्फ एक नीतिगत मुद्दा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है जिसमें सभी की भागीदारी जरूरी है।

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