सऊदी अरब के खेल मंत्रालय ने गुरुवार को ऐलान किया कि देश के इतिहास में पहली बार किसी विदेशी कंपनी ने एक पेशेवर फुटबॉल क्लब का पूरा स्वामित्व हासिल किया है। यह क़दम सऊदी अरब की महत्वाकांक्षी “विज़न 2030” योजना का हिस्सा है, जिसमें खेलों के ज़रिए देश की अर्थव्यवस्था को तेल से हटाकर विविध क्षेत्रों की ओर ले जाने की कोशिश की जा रही है।
अमेरिका के बेन हारबर्ग के नेतृत्व वाली “हारबर्ग ग्रुप” ने कहा कि उन्होंने सऊदी प्रो लीग के अल-ख़ुलूद क्लब का 100% अधिग्रहण पूरा कर लिया है। यह सौदा सऊदी सरकार की फुटबॉल क्लबों के निजीकरण की ऐतिहासिक पहल का हिस्सा है। हारबर्ग ग्रुप ने कहा, “हमने आधिकारिक रूप से अल-ख़ुलूद क्लब को पूरी तरह से ख़रीद लिया है। यह विज़न 2030 के तहत खेल क्षेत्र के खुलेपन और निवेश के नए युग की शुरुआत है।
अल-ख़ुलूद क्लब ने पिछले सीजन में 18 में से 9वीं रैंक हासिल की थी। हारबर्ग ग्रुप पहले से ही स्पेन की सेकंड डिवीजन क्लब काडिज़ में 6.5% हिस्सेदारी रखता है।
तीन क्लबों का हुआ निजीकरण
सऊदी खेल मंत्रालय ने अलग बयान में बताया कि तीन क्लबों – अल अंसार, अल-ख़ुलूद और अल ज़ुल्फ़ी – को सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के माध्यम से निजी निवेश संस्थाओं को सौंप दिया गया है।
खेलों के ज़रिए छवि और अर्थव्यवस्था बदलने की कोशिश
पिछले दो सालों में सऊदी अरब ने फुटबॉल जगत में बड़ी हलचल मचाई है। क्रिस्टियानो रोनाल्डो और करीम बेंज़ेमा जैसे दिग्गज खिलाड़ी सऊदी प्रो लीग में शामिल हुए, जिससे स्थानीय फुटबॉल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।
सऊदी अरब ने 2034 फुटबॉल वर्ल्ड कप की मेज़बानी भी अपने नाम की है। इसके ज़रिए देश खुद को एक वैश्विक पर्यटन और व्यापार केंद्र के रूप में पेश करना चाहता है, ताकि आने वाले वर्षों में जब तेल की मांग घटे, तो उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहे।
चीन बनाम सऊदी मॉडल
कुछ लोगों ने इस मॉडल की तुलना चीन की सुपर लीग से की है, जहां ज़्यादा वेतन देकर विदेशी खिलाड़ियों को बुलाया गया था, लेकिन बाद में निवेश टिक नहीं पाया और क्लब दिवालिया हो गए। हालांकि सऊदी अरब की योजना अधिक रणनीतिक लगती है फुटबॉल के ज़रिए अर्थव्यवस्था, पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय छवि को मज़बूत करने का प्रयास।




