यूएई के नेशनल रिहैबिलिटेशन सेंटर (NRC) ने युवाओं के बीच नशे के तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव देखा है। सीईओ यूसुफ अलथीब अलकेतबी ने एक मीडिया चैनल से बातचीत के दौरान बताया कि पारंपरिक ड्रग्स का इस्तेमाल अब भी चिंता का कारण है, लेकिन अब युवा ऐसे वैकल्पिक नशे की ओर बढ़ रहे हैं जिन्हें ऑनलाइन अक्सर “सेफ” या “लीगल हाईज़” के नाम पर बेचा जाता है।
उन्होंने कहा, “इनमें प्रिस्क्रिप्शन मेडिसिन से लेकर घरेलू सामान तक शामिल हो सकते हैं, जिनका गलत इस्तेमाल नशे के लिए किया जा रहा है। किशोरों के लिए जिज्ञासा और नुकसान के बीच की लाइन बहुत धुंधली हो चुकी है।” ये तथाकथित “लीगल हाईज़” दरअसल नई साइकोएक्टिव सब्सटेंसेज़ (NPS) होती हैं। इन्हें इस तरह तैयार किया जाता है कि ये पारंपरिक ड्रग्स जैसा असर करें, लेकिन अभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक इनका कोई मेडिकल इस्तेमाल नहीं है और ये गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं जैसे मानसिक भ्रम, दौरे, आक्रामकता और नशे की लत। यूएनओडीसी की रिपोर्ट बताती है कि ये पदार्थ 150 से अधिक देशों में पहुंच चुके हैं और अक्सर भ्रामक नामों से बेचे जाते हैं। लंबी अवधि के स्वास्थ्य प्रभाव अब तक अज्ञात हैं।
सीईओ अलकेतबी ने कहा कि सकारात्मक पहलू यह है कि जागरूकता बढ़ रही है। अब स्कूल, अभिभावक और नीति-निर्माता मिलकर रोकथाम पर उतना ही ध्यान दे रहे हैं जितना इलाज पर। शुरुआती हस्तक्षेप, ईमानदार बातचीत और युवाओं के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम उनकी सोच और फैसलों को बेहतर बना रहे हैं।
सबसे बड़ा बदलाव किशोरों और युवाओं में देखा जा रहा है। यह उम्र उनकी पहचान बनाने और निर्णय लेने की होती है, जहाँ साथियों का दबाव नशे की ओर धकेल सकता है। लेकिन NRC इसे सिर्फ़ जोखिम नहीं बल्कि रोकथाम का महत्वपूर्ण अवसर मानता है। उनका मानना है कि सही मार्गदर्शन और परिवार का सहयोग मिलने पर युवा स्वस्थ और जागरूक विकल्प चुनने में सक्षम होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर बातचीत ने भी यूएई में नई दिशा पकड़ी है। अब लोग पहले से ज़्यादा खुलकर बात कर रहे हैं, कलंक घट रहा है और समय पर मदद लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। NRC का कहना है कि इससे नशे की रोकथाम में मदद मिलती है, क्योंकि अक्सर नशे की लत के पीछे एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन या ट्रॉमा जैसी समस्याएँ होती हैं।
पारंपरिक नशा मुक्ति केंद्रों के विपरीत, NRC का मॉडल यूएई की संस्कृति और सामाजिक ढाँचे को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यहाँ परिवार और समुदाय की भूमिका को उतनी ही अहमियत दी जाती है जितनी व्यक्तिगत इलाज को। उनका मानना है कि नशा केवल मेडिकल समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं से भी जुड़ा है।
इलाज में व्यक्तिगत योजनायें बनाई जाती हैं, जिनमें डिटॉक्स, इनपेशेंट और आउटपेशेंट उपचार, साथ ही मनोरंजन, स्वास्थ्य और व्यावसायिक प्रशिक्षण शामिल होते हैं। NRC का कहना है कि रिकवरी सिर्फ़ इलाज खत्म होने तक सीमित नहीं है; असली काम उसके बाद शुरू होता है। इसलिए वे डिस्चार्ज के बाद भी लंबे समय तक सहयोग देते हैं ताकि लोग अपनी पहचान और आत्मविश्वास दोबारा बना सकें।
रोकथाम के लिए NRC लगातार स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम चलाता है। सिर्फ़ 2024 में ही 107 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। 2025 में 60 से ज्यादा शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया ताकि वे शुरुआती संकेत पहचान सकें और सही हस्तक्षेप कर सकें।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर NRC को 2017 से ही WHO का Collaborative Centre माना जाता है। यह क्षेत्रीय स्तर पर भी रणनीति और नीतियों में योगदान दे रहा है। अगस्त 2025 में नेशनल एंटी-नारकोटिक्स अथॉरिटी की लॉन्चिंग को NRC एक बड़ा कदम मानता है, जो रोकथाम, कानून प्रवर्तन और स्वास्थ्य सेवाओं को एक साथ जोड़ देगा।
यूएई की स्वास्थ्य प्रणाली भी लगातार विकसित हो रही है। अब AI, टेलीहेल्थ और यूनिफाइड हेल्थ रिकॉर्ड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि जोखिमों की पहचान पहले हो सके और रिकवरी की निगरानी स्मार्ट तरीक़े से की जा सके। ये आधुनिक तकनीकें रिकवरी को लंबे समय तक टिकाए रखने में मददगार साबित होंगी।




