लाखों पुराने विदेशी कपड़ों की खेप मॉल में नए टैग के साथ बाजार में बिकने को तैयार है। स्थानीय गारमेंट इंडस्ट्री ने टैक्स-ड्यूटी चोरी और बाजार में बढ़ते इन उत्पादों को लेकर चिंता जताई है। इंदौर के गारमेंट व्यापारियों ने सरकार और विभागों को इस मामले की जांच करने और कारोबार पर लगाम लगाने की मांग की है।

इंदौर के मुख्य बाजार और पाश इलाकों में ये कपड़े नए बताकर और रिटैगिंग कर बिक्री के लिए पेश किए जा रहे हैं। सर्दियों से पहले ऐसे 60 लाख से ज्यादा कपड़े इंदौर पहुंचने की खबर से स्थानीय व्यापारी चिंतित हैं। कुछ समय पहले तक इन कपड़ों का कारोबार केवल फुटपाथ पर सीमित था, लेकिन अब ये चमचमाते शोरूमों में बेचे जा रहे हैं।

स्थानीय गारमेंट उद्योग के लिए ये कपड़े बड़ी परेशानी का सबब बन रहे हैं। विदेश से आ रहे इन पुराने कपड़ों के आयात के कारण स्थानीय उद्योग का कारोबार प्रभावित हो रहा है। इंदौर रेडीमेड गारमेंट व्यापारी एसोसिएशन ने इस प्रक्रिया को ‘पाप का काम’ कहा है और इससे लोगों को बीमारियों का खतरा भी बताया है।

विदेशी कपड़े नए बताकर बिक्री करने का यह काम गलत विवरण देकर किया जा रहा है। इन कपड़ों को स्थानीय बाजार में बेचने से पहले धोया जाता है, सुधारा जाता है, और ग्रेडिंग कर नए टैग लगाकर बाजार में बेचा जा रहा है। स्थानीय उद्योग के लिए इस तरह के अवैध आयात और कारोबार पर सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

 

इन सब जगहों पर होता हैं कारोबार पुराने कपड़े का

चार साल पहले तक विदेश के पुराने कपड़ों का कारोबार मालवा मिल और एमजी रोड पर रविवार को लगने वाले फुटपाथ तक सीमित था। 2019-20 से ऐसे विदेशी कपड़े नए बताकर शोरूमों में बिकने लगे। पहले राजवाड़ा खजूरी बाजार जैसे मुख्य बाजारों में कुछ दुकानें खुली। अब रिंग रोड, महालक्ष्मी नगर से लेकर सुदामा नगर, साकेत जैसे पाश इलाकों में चमचमाते शोरूम में नए के टैग के साथ ऐसे कपड़े बिक रहे हैं। इनमें ज्यादातर वूलन, कोट स्वेटर, जींस और महिलाओं बच्चों के पश्चिमी परिधान शामिल हैं।

25 रुपये में मिलते हैं कपड़े

कपड़ों के मूल्य के अनुपात में उस पर यदि कीमत 1000 रुपये से कम है तो 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है यदि मूल्य 1000 से ज्यादा है तो 12 प्रतिशत जीएसटी लागू है।

दरअसल थोक कारोबारियों को महज 25 से 100 रुपये के भीतर ये कपड़े मिल रहे हैं। ना तो इन्हें टैक्स चुकाना पड़ रहा है ना निर्माण की लागत है। ऐसे में ये भी इसे 100 से 700 रुपये में खेरची बाजार में बेच रहे हैं। स्थानीय गारमेंट इंडस्ट्री का कारोबार इससे सीधा प्रभावित हो रहा है।

यहाँ से आता हैं कपड़ा

यूरोप, अमेरिका, फ्रांस और इटली के लोग कपड़े गरीबों के लिए दान करते हैं। उसे इस श्रेणी में आयात किया जाता है। शर्त होती है कि आयातित गारमेंट को जो अच्छी हालत में है उन्हें सुधारकर अफ्रीकी या अन्य तीसरे देश में फिर से निर्यात किया जाएगा। शेष कपड़ों को काटकर उनसे यार्न यानी फिर से धागे में तब्दील कर नियत करना होता है। हालांकि लाइसेंस का उल्लंघन कर कई आयातक इन कपड़ों को धोकर, सुधारकर, ग्रेडिंग कर पानीपत और जयपुर के सप्लायर के जरिए इंदौर जैसे तमाम शहरों में भेज रहे हैं। पूरा काम बिना बिल के या गलत विवरण देकर हो रहा है। ये सप्लायर उस पर नया टैग लगाते हैं या स्थानीय दुकानदार अपने ब्रांड का टैग लगाकर इन्हें बेच रहे हैं।

बिहार से हूँ। बिहार होने पर गर्व हैं। फर्जी ख़बरों की क्लास लगाता हूँ। प्रवासियों को दोस्त हूँ। भारत मेरा सबकुछ हैं। Instagram पर @nyabihar तथा lov@gulfhindi.com पर संपर्क कर सकते हैं।

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