अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी पुरानी बादशाहत को फिर से कायम करने के लिए रूस ने एक बेहद चौंकाने वाला और महत्वाकांक्षी ऐलान किया है। रूस अब 2036 तक चांद की सतह पर एक हाई-पावर न्यूक्लियर (परमाणु) प्लांट स्थापित करने जा रहा है। यह प्लांट चांद पर चलने वाले लंबे समय के मिशनों और प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (International Lunar Research Station) को लगातार ऊर्जा प्रदान करेगा। इस विशालकाय प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रोस्कोस्मोस’ (Roscosmos) ने उठाई है और इसके लिए एयरोस्पेस कंपनी ‘लावोच्किन एसोसिएशन’ के साथ एक अहम सरकारी करार भी कर लिया गया है।
रोस्कोस्मोस और लावोच्किन के बीच हुआ अहम समझौता, 2025 से शुरू होगी स्पेसक्राफ्ट डिजाइन और इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की तैयारी
इस मिशन को हकीकत में बदलने के लिए रोस्कोस्मोस और लावोच्किन के बीच जो कॉन्ट्रैक्ट हुआ है, उसकी अवधि 2025 से 2036 तक तय की गई है। इस दौरान वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के सामने कई बड़े लक्ष्य होंगे। इसमें चंद्र पावर प्लांट के लिए विशेष स्पेसक्राफ्ट का डिजाइन तैयार करना, धरती पर उनके कड़े ग्राउंड टेस्ट करना, टेस्ट फ्लाइट्स को अंजाम देना और अंत में चांद की उबड़-खाबड़ सतह पर पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना शामिल है। यह प्लांट रूस और चीन द्वारा मिलकर बनाए जा रहे रिसर्च स्टेशन (ILRS) को बिजली की सप्लाई देगा। इससे वहां मौजूद रोवर, वैज्ञानिक ऑब्ज़र्वेटरी और कम्युनिकेशन सिस्टम को बिना रुके काम करने में मदद मिलेगी।
चांद की 336 घंटे लंबी रात में सोलर पैनल हो जाते हैं फेल, इसलिए न्यूक्लियर ऊर्जा बनेगी मिशन की लाइफलाइन
चांद पर बिजली पैदा करना धरती जितना आसान नहीं है। वहां एक रात लगभग 336 घंटे (करीब 14 दिन) की होती है। इतने लंबे समय तक अंधेरा रहने के कारण सामान्य सोलर पैनल काम करना बंद कर देते हैं, जिससे मिशन के ठप होने का खतरा बना रहता है। रूस का यह न्यूक्लियर प्लांट इसी समस्या का परमानेंट समाधान होगा। यह प्लांट लगातार बिजली पैदा करेगा, जिससे चांद पर मौजूद बेस साल भर चालू रह सकेगा। इस प्रोजेक्ट में रूस की परमाणु कंपनी रोसाटॉम (Rosatom) और कुरचटोव इंस्टिट्यूट जैसे दिग्गज संस्थान भी शामिल हैं, जो यह सुनिश्चित करेंगे कि वहां परमाणु रिएक्टर आधारित पावर सिस्टम सुरक्षित और प्रभावी ढंग से काम करे।
लूना-25 की विफलता के बाद अपनी साख बचाने की कोशिश, चीन के साथ मिलकर मंगल मिशन के लिए रास्ता बनाने की तैयारी
साल 2023 में ‘लूना-25’ क्रैश होने के बाद रूस की अंतरिक्ष क्षमताओं पर दुनिया भर में सवाल उठे थे। अब यह न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट रूस के लिए अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पाने का एक बड़ा मौका है। यह कदम अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियों के बीच चल रही ‘स्पेस रेस’ में रूस की पकड़ मजबूत करने के लिए उठाया गया है। रूस और चीन जिस ILRS बेस की योजना बना रहे हैं, वह सिर्फ चांद तक सीमित नहीं रहेगा। भविष्य में यह बेस मंगल ग्रह (Mars) और उससे आगे के मिशनों के लिए एक लॉजिस्टिक हब के रूप में काम करेगा। यह न्यूक्लियर प्लांट उस लंबी रणनीति की ‘ऊर्जा रीढ़’ साबित होगा।
अमेरिका से पहले चांद पर कब्जा जमाने की होड़, जो देश पहले बनाएगा पावर स्टेशन वही करेगा संसाधनों पर राज
चांद पर न्यूक्लियर रिएक्टर लगाने की दौड़ में रूस अकेला नहीं है। अमेरिका भी 2030 के आसपास चांद पर अपना परमाणु संयंत्र लगाने की योजना पर तेजी से काम कर रहा है। इसी कारण चंद्र ऊर्जा ढांचे को लेकर वैश्विक स्तर पर एक नई होड़ शुरू हो गई है। अंतरिक्ष विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी देश चांद पर सबसे पहले अपना स्थायी पावर-इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर लेगा, उसे ही वहां मौजूद बेशकीमती संसाधनों (जैसे पानी की बर्फ और दुर्लभ धातुएं) के इस्तेमाल में रणनीतिक बढ़त मिलेगी। यह प्रोजेक्ट न केवल विज्ञान के लिए, बल्कि भविष्य की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए भी निर्णायक साबित होने वाला है।





