राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अब नगर निगम (MCD) एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रहा है। आने वाले समय में दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाहनों से वसूला जाने वाला टोल टैक्स सीधे ग्रैप (GRAP) सिस्टम से जोड़ा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि जैसे ही हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा, टोल नाकों पर वसूली के नियम भी सख्त हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में एमसीडी ने स्वीकार किया है कि वह ग्रैप-3 और ग्रैप-4 के दौरान भारी वाहनों की एंट्री और टोल संग्रह की व्यवस्था में बड़े बदलाव करने पर विचार कर रही है।
जब दिल्ली-एनसीआर की हवा ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंचेगी, तब टोल कटने के बाद भी कमर्शियल गाड़ियों को नहीं मिलेगी शहर में एंट्री
प्रस्ताव के तहत, जब राजधानी और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ या ‘गंभीर’ स्तर पर पहुंच जाएगी और ग्रैप-3 या ग्रैप-4 की पाबंदियां लागू होंगी, तो बॉर्डर पर स्थित टोल नाकों पर कमर्शियल वाहनों को रोका जा सकता है। अब तक टोल चुकाने पर वाहनों को प्रवेश मिल जाता था, लेकिन नई व्यवस्था में ऐसा नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दिशा में कड़े सुझाव दिए हैं। कोर्ट का मानना है कि जब प्रदूषण का स्तर (AQI) 450 के पार चला जाए, तो सिर्फ जरूरी सेवाओं (Essential Services) वाले वाहनों को ही एंट्री दी जानी चाहिए। बाकी भारी वाहनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगना चाहिए ताकि वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके।
सालाना 900 करोड़ से ज्यादा की कमाई करती है एमसीडी, लेकिन कोर्ट ने पूछा- प्रदूषण फैलाने वालों पर सख्ती क्यों नहीं?
एमसीडी हर साल टोल टैक्स के जरिए करीब 900 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई करती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सवाल खड़ा किया है कि जब भारी ट्रक और कमर्शियल वाहन प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक हैं, तो ग्रैप लागू होने पर उन पर सख्त रोक क्यों नहीं लगाई जाती? अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि अगर दिल्ली सरकार टोल वसूली का एक हिस्सा राज्य के राजस्व में समायोजित कर ले और बची हुई राशि को प्रदूषण नियंत्रण और सड़कों के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में खर्च करे, तो कोर्ट की आपत्तियां काफी हद तक दूर हो सकती हैं।
वजीरपुर बॉर्डर पर टोल प्लाजा के कारण लगता है भीषण जाम, घंटों खड़े रहते हैं ट्रक और बढ़ जाता है धुएं का गुबार
जमीनी हकीकत यह है कि टोल वसूली के कारण कई बार बॉर्डर पर लंबा जाम लग जाता है। उदाहरण के तौर पर वज़ीरपुर बॉर्डर पर एमसीडी के टोल प्लाज़ा के चलते अक्सर गाड़ियां फंसी रहती हैं। जब ट्रक और भारी वाहन देर तक कतार में खड़े रहते हैं, तो उनके इंजन से निकलने वाला धुआं और धूल प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा देता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि अगर टोल प्लाज़ा खुद जाम और प्रदूषण की वजह बन रहे हैं, तो ग्रैप-3 या 4 लागू होने के दौरान इन नाकों की व्यवस्था बदलनी होगी। इसमें ई-टोल को बढ़ावा देना, अलग लेन बनाना या अस्थायी रूप से नाकों को हटाना शामिल हो सकता है।
सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने पर भारी वाहनों पर लगेगा इतना ज्यादा ‘ग्रीन-सेस’ कि वे दिल्ली के बजाय अपनाएंगे बाईपास रूट
कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद अब यह उम्मीद जगी है कि एमसीडी, दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड मिलकर एक नई और सख्त पॉलिसी तैयार करेंगे। इस पॉलिसी में टोल की दरों और वसूली के नियमों को AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) पर आधारित बनाया जा सकता है। अगर यह मॉडल लागू हो जाता है, तो सर्दियों के महीनों में जब प्रदूषण चरम पर होता है, उस दौरान भारी ट्रकों को या तो पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाएगा या फिर उन पर इतना भारी ‘ग्रीन-सेस’ लगाया जाएगा कि वे दिल्ली के भीतर से गुजरने के बजाय बाहर के बाईपास रूट से जाना ही पसंद करेंगे।




