भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार ने हाल ही में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया। इस घोषणा पर बिहार के सभी दलों, जिनमें राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल है, ने इसे अपनी उपलब्धि बताने का प्रयास किया। किंतु, क्या आप जानते हैं कि आरजेडी के आधारस्तंभ लालू यादव ने एक बार कर्पूरी ठाकुर को अपनी जीप उधार देने से मना कर दिया था?
हां, यही वह लालू यादव हैं, जो कर्पूरी ठाकुर की समाजवादी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। इस घटना ने उनके और उनके बीमार और बुजुर्ग गुरु कर्पूरी ठाकुर के बीच के रिश्ते को एक नई परिभाषा दी।
कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें आज की इंस्टाग्राम पीढ़ी शायद ही जानती हो, ने सबसे पहले सर्वाधिक पिछड़े वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण करके उन्हें सशक्त बनाया था। उनके द्वारा निर्धारित कोटा में महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए भी प्रावधान थे, जो 1990 के दशक की मंडल राजनीति से पहले का था।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न
23 जनवरी को, उनकी 100वीं जयंती के पूर्व संध्या पर, केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत दिया गया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और प्रतिस्पर्धा
इस घोषणा पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तत्काल प्रतिक्रिया दी। जहां जनता दल (यूनाइटेड) ने लंबे समय से कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न की मांग की थी, वहीं आरजेडी इस घोषणा से अनजान नजर आई।
लालू यादव और कर्पूरी ठाकुर
1980 के दशक में, जब कर्पूरी ठाकुर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, तब उन्होंने एक बार लालू यादव से उनकी जीप उधार मांगी थी। लालू यादव ने उन्हें जीप उधार देने से मना कर दिया था। इस घटना को प्रमुख पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन और उनका कार्य
कर्पूरी ठाकुर, जो एक अत्यंत पिछड़े समुदाय से आते थे, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। उनके द्वारा किए गए सुधारों में महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण शामिल थे।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कर्पूरी ठाकुर की सादगी और उनके विनम्र परिवेश की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि कैसे कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में राजनीतिक नेताओं के लिए बनाए जा रहे कॉलोनी में कोई जमीन या पैसा नहीं लिया था।
इस तरह, कर्पूरी ठाकुर की विरासत और उनके योगदान को भारत रत्न के रूप में सम्मानित करने का केंद्र सरकार का निर्णय न केवल उनके कार्यों की मान्यता है, बल्कि यह उनके सादगी और समर्पण की भी एक पहचान है।